स्वाधीनता सेनानी एवं पूर्व विधायक पं. भगवती दीन तिवारी की पुण्यतिथि पर विशेष


मरा नहीं वही, जो जिया न खुद के लिये

जौनपुर। अपने लिए सभी जीते हैं, लेकिन जो दूसरों के लिए जिए ,उसी का जीना, सार्थक होता है। ऐसा व्यक्ति कभी मरता नहीं, मरकर भी वह अपने यश शरीर में जीवित रहता है। स्व. पण्डित भगवती दीन तिवारी ऐसे ही लोगों में एक थे। उन्हें अकारण नहीं स्मरण किया जाता है। समाज और देश के लिए उनका जो अवदान है, वह हमारे ऊपर ऋण के समान है।
उनके सुकर्मों का अनुगमन कर और उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने का संकल्प लेकर ही उऋण हुआ जा सकता है। तत्कालीन सदर तहसील के अटारा गांव में एक प्रधानाध्यापक, भूपति, पण्डित रामस्वरूप तिवारी के पुत्र के रूप में पण्डित भगवती दीन तिवारी का जन्म 07 जनवरी सन् 1900 में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई। उनकी उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय और सेंट्रल हिन्दू स्कूल वाराणसी में हुई जहां से उन्होंने अंतिम विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की। गुलामी के दिन थे देश को आजाद कराने की जद्दोजहद चल रही थी। काशी प्रवास में ही उनका जुड़ाव भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं से हुआ। सन् 1920 में जब गांधी जी काशी विद्यापीठ में आये तो उनकी सुरक्षा में तैनात प्रमुख वालन्टियर में भगवती दीन ही रहें। 1931 में जब सरदार भगत सिंह को फांसी की सजा हुई तो उसके विरोध में जो बवंडर उठा उसमें भी इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। जिसके कारण वह अंग्रेजी शासन की निगाह में चढ़ गये। कांग्रेस संगठन और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी सक्रियता बढ़ती गई। वह 1939 में जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बनाए गए और 1946 तक इस पद पर रहे। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भगवती दीन तिवारी ने जनपद का नेतृत्व किया और जब 1946 में जिला विकास परिषद का गठन
हुआ तो उसके अध्यक्ष बनाए गए। विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई। कस्तूरबा ट्रस्ट की अध्यक्षता भी की। जिले में सहकारी आंदोलन का भी नेतृत्व किया। देश आजाद होने के बाद नए-नए विद्यालयों के खुलने का क्रम चला तो उन्होंने जिले में अनेकानेक विद्यालयों की स्थापना कराई। 1952 में चुनाव जीतकर जौनपुर पश्चिमी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उत्तर प्रदेश में किया। पुनः 1962 में गड़वारा क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव जीते। स्वतंत्रता संग्राम और एक सच्चे तथा निष्ठावान कांग्रेसी के नाते उन्हें केन्द्र शासन ने ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया। 1967 में उन्होंने सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लिया ,लेकिन 1978 में जब तत्कालीन शासन ने श्रीमती इंदिरा गांधी को जेल में डाल दिया था तो उसके विरोध में देश भर में कांग्रेस ने आंदोलन छेड़ा।
पण्डित जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी से लेकर डा. सम्पूर्णानंद, बाबू जय प्रकाश नारायण, पण्डित कमलापति त्रिपाठी, आचार्य नरेन्द्र देव, गोविन्द बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी आदि से निकट सम्पर्क था। समकालीनों में डा० हरगोविन्द सिंह, बाबू राजदेव सिंह, रउफ जाफरी, से पारिवारिक संबंध होने के बावजूद उन्होंने अपने संबंधों का इस्तेमाल कभी नहीं किया। जीविका के लिए वकालत का पेशा स्वीकार किया। उनके पुत्र रमेश चन्द्र तिवारी (बेबी तिवारी) ने भी उन्ही का अनुकरण किया और वे निष्ठा के साथ इसी पेशे से जुड़ हुए थे। उनके एक दामाद पण्डित कन्हैया लाल मिश्र एडवोकेट जनरल रहे, वही दूसरे पण्डित श्रीपति मिश्र उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनके लिए इन सब का कोई अर्थ नहीं था। अपने परिवार के विषय में भगवती दीन तिवारी ने कभी सोचा ही नहीं। रहन-सहन और खान-पान में परम सादे और सात्विक तथा स्वभाव से सरल, और व्यवहार में मर्यादावादी, भगवती दीन तिवारी ने अपने उत्तराधिकारियों को भी वही संस्कार दिए । परपौत्र डॉ. राजन तिवारी भी उसी निष्ठा भाव से समाज से जुड़े है। निश्चित ही पण्डित भगवती दीन तिवारी की यशकाय निरंतर उन्हें सत्पथ पर चलने की प्रेरणा देती रहेगी ।

Comments

Popular posts from this blog

नईगंज में गोली मारकर युवक को घायल करने वाला अभियुक्त गिरफ्तार गया जेल

मूर्ति विसर्जन के दौरान एचटी लाइन की चपेट में आने से आधा दर्जन से अधिक झुलसे,दो की दर्दनाक मौत

पुलिस अधीक्षक ने आठ उपनिरीक्षको का तबादला करते हुए पांच थानो के बदले प्रभारी देखे सूची