सुल्तानपुर के दबंग सोनू और मोनू को दलित महिला ने दी जबरदस्त पटखनी,जिले से लेकर राजधानी तक चर्चा


सुलतानपुर जनपद के दबंग सोनू मोनू को एक दलित महिला से पटखनी मिलने की गूंज जिला से लेकर प्रदेश की राजधानी तक होने लगी है। दलित महिला का राजनैतिक सफर प्रधानी के चुनाव में मिली हार से शुरू हुआ फिर क्षेत्र पंचायत सदस्य पद पर मिली जीत पर रुका। अब ब्लॉक प्रमुख की कुर्सी मिल गई। भाग्य का ही खेल है कि अंगूठा टेक पार्वती 66 ग्राम पंचायतों में विकास का रथ चलाएंगी। किंग मेकर की भूमिका भाजपा विधायक विनोद सिंह ने निभाई, जिसके चलते पहली बार इस सीट पर भाजपा को जीत मिली।
ब्लॉक के पिपरीसाईंनाथपुर के भौंसा गांव निवासी अनुसूचित जाति की पार्वती देवी का जीवन भले ही मुफलिसी और दुश्वारियों भरा रहा हो, पर उनके सपनों की उड़ान जारी रही। इसकी शुरुआत उन्होंने वर्ष 2015 में ग्राम पंचायत में ग्राम प्रधान पद के लिए चुनाव लड़कर की। 
रसूखदारों के रोकने के बावजूद सामान्य सीट पर पर्चा दाखिल कर पूरी निर्भीकता से वह चुनाव मैदान में डटी रहीं। हालांकि, पहले प्रयास में कामयाब तो नहीं हुई, लेकिन उनकी हिम्मत और दिलेरी ने सभी को प्रभावित किया।
पति राम प्रताप के मौत के बाद पार्वती के जीवन की दिशा विपरीत हो गई। परिवार में आर्थिक तंगी का दौर शुरू हुआ और वह गांव के प्राइमरी स्कूल में रसोइया की नौकरी करने लगीं। इसके बाद भी वह गांव के सामाजिक कार्यों और राजनीतिक बैठकों में पहुंचतीं और बेबाकी से अपना पक्ष रखतीं। सामाजिक सरोकार में लगीं पार्वती 2021 में क्षेत्र पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरीं। इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली।
जैसे ही धनपतगंज में ब्लॉक प्रमुख के उप चुनाव की घोषणा हुई, भाजपा विधायक विनोद सिंह की पारखी नजरों ने पार्वती को खोज लिया। पार्टी ने समर्थन के साथ प्रत्याशी घोषित कर बाहुबली भद्र बंधुओं (सोनू-मोनू सिंह) के सामने तगड़ी चुनौती पेश कर दी। 
विधायक खुद भी जीत के लिए लग गए। आखिरकार चुनाव में तीन वोट के अंतर से जीत मिली। इसके साथ ही पार्वती देवी कामयाबी का परचम लहराते हुए पहुंच ब्लॉक प्रमुख बन गईं।
मालूम हो कि वर्ष 2021 में प्रमुख पद के चुनाव में यशभद्र सिंह मोनू निर्विरोध ब्लॉक प्रमुख चुने गए थे। लगभग तीन वर्ष पांच माह का कार्यकाल बीतने के बाद एक आपराधिक मामले में सजा होने से उन्हें अयोग्य घोषित कर सीट को रिक्त मान लिया गया। इसके बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने अपनी मां ऊषा सिंह को चुनाव मैदान में उतारा। सपा ने समर्थन भी दिया, लेकिन शिकस्त का सामना करना पड़ा।

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