भारत का विभाजन देश के लिए किसी विभीषिका से कम नहीं थी: अनिल राजभर


जौनपुर। भारतीय जनता पार्टी जौनपुर की विभाजन की विभीषिका विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता जिलाध्यक्ष पुष्पराज सिंह ने किया और उसके मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर रहे। सर्वप्रथम पार्टी के पुरोधा डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम की सुभारम्भ की गई। तत्पश्चात सभी कार्यकर्ताओं के द्वारा बंदे मातरम का गीत गाया गया। उसके उपरांत मुख्य अतिथि का पुष्प गुच्छ और अंग वस्त्र देकर जिलाध्यक्ष पुष्पराज सिंह ने स्वागत किया।
मुख्य अतिथि अनिल राजभर ने कहा कि 14 अगस्त 1947 की तारीख भारत भला कैसे भूल सकता है एक तरफ 200 वर्षों की गुलामी के बाद आजादी मिलने वाली थी तो वहीं दूसरी ओर देश के दो टुकड़े हो रहे थे लाखों लोग इधर से उधर हो गए, घर-बार छूटा, परिवार छूटा, लाखों की जानें गईं, विभाजन भारत के लिए विभीषिका से कम नहीं थी इसी दर्द को याद करते हुए पिछले साल आजादी की सालगिरह से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया कि 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया जायेगा। भारत की वर्तमान और भावी पीढ़ियों को विभाजन के दौरान लोगों द्वारा सही गई यातना और वेदना का स्मरण दिलाने के लिए 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जा रहा है, बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों-भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान गंवानी पड़ी।
राजयसभा सांसद सीमा द्विवेदी ने कहा कि विभाजन की घटना को याद किया जाए तो 14 अगस्त 1947 का दिन भारत के लिए इतिहास का एक गहरा जख्म है वह जख्म आज तक ताजा है और भरा नहीं है यह वो तारीख है, जब देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान एक अलग देश बना बंटवारे की शर्त पर ही भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली, भारत-पाक विभाजन ने भारतीय उप महाद्वीप के दो टुकड़े कर दिए. दोनों तरफ पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान और बीच में भारत, इस बंटवारे से बंगाल भी प्रभावित हुआ पश्चिम बंगाल वाला हिस्सा भारत का रह गया और बाकि पूर्वी पाकिस्तान जो आज भारत ने 1971 मे बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया।
पूर्व विधायक सुरेंद्र सिंह ने कहा कि विभाजन के कारण हुई हिंसा और नासमझी में की गई नफरत से लाखों लोग विस्थापित हो गए और कई ने जान गंवा दी उन लोगों के बलिदान और संघर्ष की याद में 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के तौर पर मोदी सरकार द्वारा याद किए जाने का निर्णय लिया गया है, विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस, सामाजिक विभाजन, वैमनस्यता के जहर को दूर करने और एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तीकरण की भावना को और मजबूत करने की जरूरत की याद दिलाए यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए प्रेरित करेगा साथ ही इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होंगी।
पूर्व जिलाध्यक्ष हरिश्चंद्र सिंह ने कहा कि भारत का विभाजन देश के लिए किसी विभीषिका से कम नहीं थी इसका दर्द आज भी देश को झेलना पड़ रहा है ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ने पाकिस्तान को 1947 में भारत के विभाजन के बाद एक मुस्लिम देश के रूप में मान्यता दी लाखों लोग विस्थापित हुए थे और बड़े पैमाने पर दंगे भड़कने के चलते कई लाख लोगों की जान चली गई थी।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए जिलाध्यक्ष पुष्पराज सिंह ने कहा कि देश का बंटवारा हुआ लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से नहीं इस ऐतिहासिक तारीख ने कई खूनी मंजर देखे भारत का विभाजन खूनी घटनाक्रम का एक दस्तावेज बन गया जिसे हमेशा उलटना-पलटना पड़ता है दोनों देशों के बीच बंटवारे की लकीर खिंचते ही रातों-रात अपने ही देश में लाखों लोग बेगाने और बेघर हो गए धर्म-मजहब के आधार पर न चाहते हुए भी लाखों लोग इस पार से उस पार जाने को मजबूर हुए, इस अदला-बदली में दंगे भड़के, कत्लेआम हुए जो लोग बच गए, उनमें लाखों लोगों की जिंदगी बर्बाद हो गई भारत-पाक विभाजन की यह घटना सदी की सबसे बड़ी त्रासदी में बदल गई यह केवल किसी देश की भौगोलिक सीमा का बंटवारा नहीं बल्कि लोगों के दिलों और भावनाओं का भी बंटवारा था बंटवारे का यह दर्द गाहे-बगाहे हरा होता रहता है विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस इसी दर्द को याद करने का दिन है।
कार्यक्रम का संचालन जिला महामंत्री अमित श्रीवास्तव ने की। उक्त अवसर पर मनोरमा मौर्य सुशील मिश्रा पीयूष गुप्ता सुरेंद्र सिंघानिया संदीप सरोज सुनील यादव धीरू सिंह विजय सिंह विद्यार्थी बृजेश यादव धनंजय सिंह राम सिंह मौर्य बेचन पाण्डेय अज्जू दुबे आमोद सिंह रोहन सिंह नरेंद्र उपाध्याय पंकज सिंह अवनीश यादव अवधेश सोनकर आदि उपस्थित रहे।

Comments

  1. विभाजन की विभीषिका को ताजा करने का औचित्य क्या है केवल भाजपा के राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु दंगे फसाद कराना।
    इनका विभाजनकारी चरित्र इस तरह के आयोजनों में साफ-साफ दिखाई पड़ता है।

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