एक जुलाई से लागू हो जायेगा नया कानून, देखे बदली धाराओ का चार्ट, जानिए नये कानून से क्या लाभ और क्या होगी हानि


जौनपुर। एक जुलाई से भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू होने जा रहा है। पुराने तीन कानूनों में बदलाव से आम आदमी को सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि अब वह कहीं से भी एफआईआर दर्ज करा सकेंगे। यह जरूरी नहीं होगा कि जहां अपराध हुआ है उसी से संबंधित थाने में तहरीर दी जाए। अब जीरो एफआईआर को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 173 के माध्यम से कानूनी मान्यता दे दी गई है।
जनपद के वरिष्ठ अधिवक्ता तेज बहादुर सिंह सहित क्रिमिनल लायर संतोष श्रीवास्तव का मत है कि तीन नए कानून लागू होने के बाद मुकदमों को वापस लेना आसान नहीं होगा। अदालत में लंबित आपराधिक मुकदमे को वापस लेने के लिए पीड़ित को कोर्ट में अपनी बात रखने का अवसर मिलेगा। पीड़ित को सुनवाई का अवसर दिए बिना मुकदमा वापस लेने की सहमति अदालत नहीं देगी।
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जैसे कि वीडियो और फोटो इत्यादि को नए कानून में जगह दी गई है। मारपीट की छोटी घटनाओं, गालीगलौज या छोटे अपराध में जमानत टूटने के मामले में वारंटी को हथकड़ी लगाए बगैर पुलिस थाने ले जाएगी।
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत सिंह ने बताया कि इस कानून के पीछे है कि आम जनमानस को त्वरित न्याय मिल सके। शर्त यह रहेगी कि आरोपी का पुराना आपराधिक इतिहास न हो। इसी तरह से आपराधिक मुकदमों में अब तारीख पर तारीख वाला हिसाब-किताब नहीं चलेगा। तीन वर्ष में मुकदमे का निस्तारण करने की बाध्यता नए कानून में है।
अधिवक्ता श्री सिंह ने बताया कि महिलाओ पर विशेष फोकस है।  दुष्कर्म पीड़िता अब अपनी सुविधानुसार जगह पर अपना बयान दर्ज करा सकेगी। थाने जाने की जरूरत नहीं होगी। पीड़िता द्वारा बताई गई जगह पर जाकर पुलिस उसका बयान दर्ज करेगी। उस दौरान पीड़िता के अभिभावक और महिला पुलिस की मौजूदगी अनिवार्य होगी। 
बयान की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग होगी, जिसे कोर्ट में अति सुरक्षित तरीके से दाखिल किया जाएगा। कोर्ट में भी मामले की सुनवाई के दौरान किसी महिला का उपस्थित होना जरूरी होगा, चाहे वह महिला वकील हों या महिला पुलिस हों। दुष्कर्म और पॉक्सो एक्ट के मामले में जांच दो माह के भीतर पूरी करने की व्यवस्था की गई है। नए कानून के तहत पीड़ित को 90 दिन के भीतर अपने मामले की प्रगति पर नियमित रूप से जानकारी पाने का अधिकार होगा।
सेंट्रल बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विवेक शंकर तिवारी ने बताया कि सड़क हादसे में मौत की स्थिति में अब तक आरोप सिद्ध होने पर दोषी चालक दो वर्ष की सजा से दंडित किया जाता था। नए कानून के तहत अब दोषी चालक पांच साल की सजा और जुर्माने से दंडित किया जाएगा। इसी तरह से यदि डॉक्टर के उपेक्षापूर्ण कृत्य से किसी मरीज की मौत होगी तो दोष सिद्ध होने पर दो वर्ष की सजा और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
नये कानून को लागू होने के साथ ही एक बार पुलिस विभाग में लोगो को खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। हलांकि कुछ अधिवक्ताओ का मत है कि नये कानून को समझने में न्यायपालिका से जुड़े अधिवक्ताओ और न्यायिक अधिकारियों को लगभग छह माह कम से कम समय मिलेगा।
बदले कानून में कुछ धाराओ की परिवर्तित धाराए निम्नवत हो देखे चार्ट

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