धनंजय सिंह पर लगे आरोप को दोष सिद्ध करते हुए न्यायधीश ने जानें क्या दिया तर्क, सजा पर आज आयेगा फैसला
जौनपुर।नमामि गंगे के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल का करीब तीन साल दस महीने पहले अपहरण कराने, रंगदारी मांगने और गालीगलौज कर धमकाने के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और सहयोगी संतोष विक्रम सिंह को एडीजे चतुर्थ (एमपी-एमएलए) शरद कुमार त्रिपाठी की अदालत ने दोषी पाया है। अदालत बुधवार को मामले में सजा सुनाएगी।अदालत ने धनंजय और संतोष विक्रम को दोष सिद्ध वारंट बनाकर जिला जेल भेज दिया है। अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि मामले का अभियुक्त पूर्व सांसद है। उसके ऊपर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। उसका क्षेत्र में काफी नाम है, जबकि वादी मात्र सामान्य नौकर है। ऐसी स्थिति में वादी का डरकर अपने बयान से मुकर जाना अभियुक्त को कोई लाभ नहीं देता है, जबकि मामले में अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य मौजूद हों।
मुजफ्फरनगर निवासी अभिनव सिंघल ने 10 मई 2020 को लाइन बाजार थाने में अपहरण, रंगदारी और अन्य धाराओं में पूर्व सांसद धनंजय सिंह व संतोष विक्रम सिंह और दो अज्ञात के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। अभिनव सिंघल का आरोप था कि संतोष विक्रम सिंह और अन्य दो लोग पचहटिया स्थित साइट पर आए थे। वहां से असलहे के बल पर चारपहिया वाहन से उनका अपहरण कर मोहल्ला कालीकुत्ती स्थित धनंजय सिंह के घर ले जाया गया। धनंजय सिंह पिस्टल लेकर आया और गालीगलौज करते हुए उनकी फर्म को कम गुणवत्ता वाली सामग्री की आपूर्ति करने के लिए दबाव डालने लगा। उनके इन्कार करने पर धमकी देते हुए धनंजय ने रंगदारी मांगी। किसी प्रकार से उनके चंगुल से निकलकर लाइन बाजार थाने गए और आरोपियों के खिलाफ तहरीर देकर कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने धनंजय सिंह को उसके आवास से गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया था, जहां से वह न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट से जमानत पर धनंजय जेल से बाहर आया था।
रंगदारी और अपहरण के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और संतोष विक्रम सिंह की ओर से अदालत में दलील दी गई कि उनके ऊपर लगे आरोप निराधार हैं। वादी और उसका गवाह अपने बयान से मुकर गए हैं। उन्हें रंजिश में गलत तरीके से फंसाया गया है। इस पर एमपी-एमएलए कोर्ट की अदालत ने कहा कि किसी सांसद या विधायक को यह हक या फिर अधिकार नहीं है कि वह किसी सरकारी कर्मचारी को फोन करके जबरन अपने घर बुलाए।
अदालत ने कहा कि इस मामले में वादी प्राइवेट कंपनी का कर्मचारी था और सत्यप्रकाश यादव उत्तर प्रदेश जल निगम के जेई थे। ऐसे व्यक्तियों को काम के दौरान फोन करके अपने घर बुला लेना या किसी को भेजकर मंगवा लेना अपने आप में अपराध की श्रेणी के अंतर्गत आता है। मामले में अभियुक्त यह नहीं साबित कर सके कि उनके पास वादी और जल निगम के जेई को घर बुलाने का कोई हक या अधिकार मौजूद था। इनके भय और दबाव दबाव में बयान बदले गए हैं। अभियुक्तों ने अपने बचाव में कहा कि जन शिकायत मिली थी। इस वजह से उसके द्वारा मुकदमे के वादी अभिनव सिंघल और सरकारी अवर अभियंता सत्यप्रकाश यादव को अपने घर बुलाया गया था, लेकिन पत्रावली देखने से स्पष्ट है कि अभियुक्त न्यायालय के समक्ष वादी की कंपनी के काम के विरुद्ध ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए, जिससे यह साबित होता हो कि उन्हें किसी तरह की कोई जन शिकायत प्राप्त हुई थी।
अदालत ने कहा कि इस मामले में वादी को यदि अभियुक्तों से कोई डर, भय, परेशानी नहीं थी या फिर किसी तरह का कोई विवाद नहीं था तो क्यों उसके द्वारा घटना के तुरंत बाद अपने उच्चाधिकारियों को फोन किया गया। एसपी से मुलाकात की गई और थाने जाकर तहरीर दी गई। मामला पूर्ण रूप से अभियुक्तों के विरुद्ध साबित है।
अदालत ने कहा कि अभियुक्तों का कहना है कि उन्हें रंजिश में फंसाया गया है। मगर, न्यायालय के समक्ष अभियुक्तों ने ऐसा कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया, जो यह साबित करता हो कि उन्हें रंजिशन फंसाया गया है। मामले में वादी मुकदमा या अन्य साक्षीगण की निश्चित तौर पर अभियुक्तगण से पूर्व की कोई रंजिश नहीं है। अभियुक्त यह भी नहीं बता पाए कि किस व्यक्ति ने किस रंजिश के तहत वादी का प्रयोग कर उन्हें फंसाया है।
अदालत ने कहा कि जब कोई साक्षी पूर्ण रूप से विश्वसनीय साक्षी है। एकल साक्षी है तो उसके साक्ष्य के आधार पर न्यायालय अभियुक्तों को दोषसिद्ध कर सकता है। जहां साक्षी अविश्वसनीय है, वहां स्थिति स्वयं स्पष्ट है कि ऐसे साक्ष्य के आधार पर अभियुक्तगण को दोष सिद्ध नहीं किया जा सकता। मगर, जहां पर आंशिक रूप से साक्षी विश्वसनीय व आंशिक रूप से अविश्वसनीय हो तो ऐसे मामले में न्यायालय को साक्ष्य के समर्थन पर विचार करना होगा। इस मामले में अभियोजन द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्षीगण आंशिक रूप से विश्वसनीय साक्षीगण की श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। साक्षियों के द्वारा घटना का दिन, समय, दिनांक, घटनास्थल अभियुक्तगण की घटनास्थल पर उपस्थिति को न्यायालय के समक्ष साबित किया गया है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन मौखिक, दस्तावेजी व परिस्थितिजन्य साक्ष्य से संदेह से परे यह साबित कर सका है कि 10 मई 2020 को शाम 5.30 बजे घटनास्थल पचहटिया पर अभियुक्तगण ने सबके सामान्य आशय में आपराधिक षडयंत्र रचकर वादी मुकदमा अभिनव सिंघल की हत्या करने के आशय से अपहरण किया। इसके बाद उसे हत्या के खतरे में डालकर गालियां देते हुए जान से मारने की धमकी दी। एक सामान्य प्रज्ञावान व्यक्ति भी पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर घटना को अभियुक्तगण के द्वारा ही कारित किया जाना निष्कर्षित करेगा। ऐसे में धनंजय सिंह और संतोष विक्रम सिंह अपराध के लिए दोष सिद्ध किए जाने योग्य हैं।
अपहरण के मामले में 10 वर्ष तक के कठिन कारावास का प्रावधान है। रंगदारी में भी 10 वर्ष तक के कारावास और जुर्माना दोनों का प्रावधान है। अपमानित करने में दो वर्ष तक के कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित करने का प्रावधान है। आपराधिक धमकी के मामले में दो वर्ष तक के कारावास या आर्थिक दंड या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
दोष सिद्ध होने का आदेश आने के बाद अभियुक्त एवं पूर्व सांसद धनंजय सिंह का बयान आया कि पूरा मामला भ्रष्टाचार का था, इसके बारे में सबको पता है। वादी ने अदालत में शपथ पत्र भी दिया था कि हम पर लगाए गए आरोप गलत हैं। न्यायपालिका के ऊपर हम सवाल नहीं खड़ा कर सकते हैं। अदालत का आदेश देखेंगे।
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