लोकसभा के इस चुनाव में इतिहास रहेगा कायम रहेगा या फिर...? जानें अब तक के सांसदो का नाम और कार्यकाल
जौनपुर। देश में लोकतंत्र के महापर्व का बिगुल बजने के साथ ही पूरे भारत की सरकारी मशीनरी आयोग के अधीन होते हुए इस महापर्व को सम्पन्न कराने की तैयारियों में जुट गयी है। इसी क्रम में यूपी के जनपद जौनपुर का भी सरकारी तंत्र चुनावी तैयारियों में जुटा हुआ है। जनपद जौनपुर में दो लोकसभा क्षेत्र पड़ता है। एक 73 जौनपुर संसदीय क्षेत्र के नाम से जाना जाता है तो दूसरा 74 मछलीशहर (सु) के नाम से जाना जाता है। सरकारी तंत्र के साथ अब सभी राजनैतिक दल के लोग भी लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों के सबसे बड़े चयनकर्ता (मतदाताओ) को पटाने के लिए गावं के गलियों की खाक छानना शुरू कर दिए है। हलांकि आयोग द्वारा अधिसूचना जारी होने के पहले भाजपा ने जौनपुर संसदीय सीट पर अपना पत्ता खोला है लेकिन अभी तक विपक्ष के लोग अपने पत्ते नहीं खोले है।मछलीशहर (सु) से अभी तक किसी भी दल ने अपने प्रत्याशी को चुनावी जंग में नहीं उतारा है लेकिन राजनैतिक पार्टियां अपने अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुट गई है।
यहां हम अभी तक 17 लोकसभा के लिए जौनपुर से प्रतिनिधित्व करने वाले नामो का जिक्र करते हुए जनपद के मतदाताओ के मूड की चर्चा करेंगे। भारत में लोकतंत्र की स्थापना के साथ 1952 और 1957 में बीरबल सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1962 और 1953 में इस सीट पर जनसंघ का कब्जा रहा और ब्रम्हजीत सिंह सांसद थे।1967 और 1971 में फिर कांग्रेस काबिज हो गई और राजदेव सिंह सांसद रहे। 1977 में जनता पार्टी से राजा यादवेंद्र दत्त दुबे सांसद बने थे। 1980 में फिर जनता पार्टी से अजीजुल्ला आजमी सांसद हुए, 1984 में फिर कांग्रेस ने कब्जा जमाया और कमला प्रसाद सिंह सांसद बने थे। इसके बाद आज तक कांग्रेस को जौनपुर संसदीय सीट पर कोई सफलता नहीं मिली थी। 1989 में राजा यादवेंद्र दत्त दुबे ने पहली बार भाजपा का कमल खिलाया और सांसद बने थे। 1991 में अर्जुन सिंह यादव जनता दल बैनर तले सांसद बने थे। 1996 में भाजपा से राज केसर सिंह सांसद चुने गए। 1998 में भाजपा को पटखनी देकर पारस नाथ यादव सपा के बैनर का परचम लहराया और सांसद बने थे। 1999 में स्वामी चिन्मयानंद ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल किया और लोकसभा में जौनपुर का नेतृत्व किया। लेकिन 2004 के चुनाव में सपा प्रत्याशी पारस नाथ यादव से हार गए पारस नाथ सांसद बने थे। इसके बाद 2009 के चुनाव में बाहुबली नेता धनंजय सिंह विधायक पद छोड़कर बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े और पहली बार हाथी को दौड़ाया सांसद बने इसके बाद आज तक धनंजय सिंह कोई भी चुनाव नहीं जीत सके है। 2014 में भाजपा का परचम लहराया और कृष्ण प्रताप सिंह उर्फ के पी सिंह सिंह सांसद बने। इसके बाद 17 वीं लोकसभा के लिए 2019 में हुए चुनाव में सपा बसपा गठबंधन से प्रत्याशी बने अवकाश प्राप्त पीसीएस अधिकारी श्याम सिंह यादव सांसद चुने गए थे।
अब फिर 18 वीं लोकसभा के लिए बिगुल बज गया है। जनपद के मतदाता किसे अपना जन प्रतिनिधित्व देगे यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन अभी तक के इतिहास पर नजर डाले तो एक इतिहास नजर आता है कि महाराष्ट्र की सियासी पिच से आकर जौनपुर में चुनाव लड़ने वाले किसी को भी जनपद की जनता ने स्वीकारा नहीं है। अब देखना है कि जौनपुर के मतदाता इतिहास बरकरार रखते है या कुछ और इतिहास बनाते है। क्योंकि भाजपा नेतृत्व ने जौनपुर में पार्टी के लिए दिन रात एक कर नीतियों का प्रचार करने वालो को नकार दिया और उपर से महाराष्ट्र के राजनैतिक जीवन शुरू कर महाराष्ट्र की पिच पर लगातार सियासत करने वाले मुम्बई के ही अधिकृत मतदाता कृपाशंकर सिंह को जौनपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए टिकट पकड़ा दिया है।
यहां बता दें कि कृपाशंकर सिंह अपने पूरे राजनैतिक जीवन में जौनपुर के विकास के लिए अभी तक ऐसा कोई काम नहीं किए है जिसे धड़ल्ले से बताया जा सके कि वह जनपद की आवाम के खास हितकर है। इतना ही नहीं जौनपुर की आवाम के बीच पहुंच कर पार्टी की नीतियों और रीतियों का प्रचार प्रसार तक कभी नहीं पहुंचे थे। अब टिकट मिलने के बाद विकास करने का दावा कर रहे है। महाराष्ट्र के मुम्बई में अपनी राजनैतिक जीवन का आगाज करने वाले कृपाशंकर सिंह के बिषय में मुम्बई के तमाम लोगो ने बताया कि वहां पर इनके द्वारा उत्तर भारतीयों के लिए कुछ खास नहीं किया गया है। जबकि उत्तर भारतीय के नाम पर राजनैतिक सफर के दौरान बड़ी उँचाई हांसिल किए थे।
अभी तक विपक्ष की ओर से कोई प्रत्याशी नहीं आया है इसलिए अभी चुनाव की रूझान आदि पर चर्चा संभव नहीं है। हां जिले के सियासी पिच पर भाजपा के बैनर तले अकेले कृपाशंकर सिंह कुलांचे मार रहे है। जिले की सियासत में धनंजय सिंह बाहुबली नेता और पूर्व सांसद चुनावी एलान के पहले लगभग दो माह पहले से खुद को चुनावी जंग में उतरने का एलान किया था उस समय लग रहा था कि चुनावी जंग संघर्ष पूर्ण रहेगी लेकिन न्याय पालिका के एक फैसले के तहत उनको जेल की सलाखों के पीछे सात साल की सजा देते हुए पहुंचा दिया गया है। इसके पीछे सियासी खेल है या फिर कुछ और है यह तो गहन जांच का बिषय है लेकिन धनंजय सिंह को चुनाव से हटाने लिए जिम्मेदारो को क्या उनके समर्थक सबक सिखाने का काम करेंगे यह एक बड़ा सवाल जौनपुर के चुनावी समर में उठा हुआ है। आगे आगे देखिए जौनपुर की जनता इस 18 वीं लोकसभा के चुनाव में क्या क्या गुल खिलाती है।
Comments
Post a Comment