बाहुबली नेता पूर्व सांसद धनंजय सिंह सहित उनके साथी को सात साल की सजा और 50 -50 हजार रुपए का जुर्माना
जौनपुर। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के मैनेजर मुजफ्फरनगर के मूल निवासी अभिनव सिंघल के अपहरण और रंगदारी टैक्स मांगने के आरोप में उपर जिला जज चतुर्थ एवं एमपी-एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश शरद चन्द त्रिपाठी ने आज बुधवार 06 मार्च को सजा के विन्दु पर बहस सुनने के पश्चात जिले के बाहुबली नेता एवं पूर्व सांसद धनंजय सिंह सहित उनके साथी संतोष विक्रम सिंह को घारा 364, 386, 504 और 120 बी के अपराध का दोषी मानते हुए अपने फैसले में 07 साल कारावास और 50- 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है।
न्यायधीश ने अपने फैसले में यह भी कहा कि जुर्माना न जमा करने पर दो माह और कारावास में रहना होगा। इस सजा के साथ अब यह भी सुनिश्चित हो गया कि पूर्व सांसद अब कभी भी वर्तमान नहीं बन सकेंगे यानी धनंजय सिंह के राजनैतिक सफर का अन्त यहीं पर हो गया है। हलांकि नियम है कि सजा भुगतने के 06 साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध रहेगा। फैसले के दिन दीवानी न्यायालय पूरी तरह से छावनी में तब्दील हो गई थी कई थानो की पुलिस और अधिकारी सुबह दस बजे से दीवानी न्यायालय के चप्पे चप्पे पर तैनात रहे है।
यहां बता दे कि इस मुकदमें एक दिन पहले यानी 05 मार्च 24 को पूर्व सांसद और उनके साथी संतोष विक्रम सिंह को दोषी करार दे दिया गया था और न्यायिक अभिरक्षा में लेकर जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया गया था। विदित हो कि 10 मई 2020 को नामामि गंगे परियोजना के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिनव सिंघल द्वारा थाना लाइन बाजार में अपने अपहरण और रंगदारी टैक्स वसूली का मुकदमा दर्ज कराया गया था। पुलिस ने मुकदमे की चार्ज सीट न्यायालय को भेजा था। न्यायालय में मुकदमे के परिसीलन के दौरान सभी गवाह पक्ष द्रोही ( होस्टाइल) हो गए थे यहां तक की मुकदमा वादी ने भी अपना मुकदमा वापस लेने की अर्जी भी लगा दी थी। इसके बाद भी न्यायधीश ने पत्रवली में मौजूद साक्ष्यो का हवाला देते हुए मुकदमे की सुनवाई की और 05 मार्च 24 को बाहुबली नेता एवं पूर्व सांसद धनंजय सिंह सहित उनके साथी संतोष विक्रम सिंह को दोषी करार देते हुए जेल भेज दिया था।
दोषी करार देते समय न्यायधीश ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि मामले का अभियुक्त पूर्व सांसद है और उसके ऊपर कई आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। उसका क्षेत्र में काफी नाम और दबदबा है, जबकि वादी मात्र सामान्य नौकर है। ऐसी स्थिति में वादी का डरकर अपने बयान से मुकर जाना अभियुक्त को कोई लाभ नहीं देता है, जबकि मामले में अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य मौजूद है।
रंगदारी और अपहरण के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और संतोष विक्रम सिंह की ओर से अधिवक्ता ने अदालत में दलील दी गई कि उनके ऊपर लगे आरोप निराधार हैं। वादी और उसका गवाह अपने बयान से मुकर गए हैं। उन्हें रंजिश में गलत तरीके से फंसाया गया है। इसके अलांवा खुद अभियुक्त पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने खुद को निर्दोष होने की बात करते हुए बताया वह एक जन प्रतिनिधि है। पूछ-ताछ के लिए बुलाया था कोई अपहरण आदि नही था। इस पर एमपी-एमएलए कोर्ट के न्यायाधीश ने तर्क देते हुए कहा कि किसी सांसद या विधायक को यह हक या फिर अधिकार नहीं है कि वह किसी सरकारी कर्मचारी को फोन करके जबरन अपने घर बुलाए।
न्यायधीश ने अपने फैसले के पक्ष में तर्क देते हुए कहा कि इस मामले में वादी प्राइवेट कंपनी का कर्मचारी था और सत्यप्रकाश यादव उत्तर प्रदेश जल निगम के जेई थे। ऐसे व्यक्तियों को काम के दौरान फोन करके अपने घर बुला लेना या किसी को भेजकर मंगवा लेना अपने आप में अपराध की श्रेणी के अंतर्गत आता है।
सजा के विन्दु पर बहस के बाद सायंकाल लगभग चार बजे के बाद फैसला आते ही पूर्व सांसद धनंजय सिंह सहित उनके समर्थक और साथी अभियुक्त में मायूसी छा गयी है। यहां यह भी बता दें कि धनंजय सिंह को पहली बार किसी अपराधिक मामले में सजा हुई है। इस सजा के आदेश की अपील हाईकोर्ट में होना सम्भव माना जा रहा है। अगर हाईकोर्ट ने एडीजे चतुर्थ शरद चन्द त्रिपाठी के आदेश पर स्थगन आदेश नहीं दिया तो धनंजय सिंह को किसी भी तरह का चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लग जाएगा। इतना ही नहीं सात साल की सजा का समय बीतने के बाद छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकने से इनके राजनैतिक जीवन के सफर पर विराम लगना तय माना जा रहा है। पूर्व सांसद के खिलाफ पारित इस आदेश को लेकर तमाम कयास भी लग रहे है आखिर जब गवाह और वादी होस्टाइल हो गये है तो सजा कैसे हुई है। कुछ लोग इसके पीछे सियासी गणित मान रहे है हलांकि सच की पड़ताल जारी है।
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