ऐतिहासिकता समेंटे जनपद के उत्तरायण में स्थापित बादशाही पोखरे का जानें क्या है इतिहास
जौनपुर।उत्तर प्रदेश का जनपद जौनपुर एक ऐसा जिला है जो तमाम इतिहासो के साथ ऐतिहासिक धरोहरो को अपने में समेटे हुए है।
जौनपुर के हर कोने में एक इतिहास छुपा है जो ना केवल सामाजिक संप्रभुता एवं अंखडता का प्रतिक है बल्कि संस्कृति का जीवंत उदाहरण भी है।प्रदेश में कई ऐसी ऐतिहासिक चीजें उपलब्ध है जो गौरवमयी इतिहास को प्रदर्शित करती है।
भारत का प्रत्येक राज्य अपनी विशिष्ट संस्कृति और जीवंत परंपराओं, जनजातियों, भाषाओं और ऐतिहासिक अतीत के साथ अनेकों तारों में ध्रुव तारें के समान चमकता हुआ दिखाई देता है। भारत के हर राज्य का अपना ही अतीत और अपना ही इतिहास है जो उसे अपने आप में बहुत खास बनाता है।
जहां आदि काल से लेकर मध्य काल एवं वर्तमान काल तक के साक्ष्य मौजूद हैं।
जनपद के उत्तरांचल में ऐसा ही एक प्राचीन साक्ष्य जो लगभग विलुप्त होने के कगार पर था सामने आया है जिसे बादशाही पोखरा व तालाब के नाम से जाना जाता है, स्थानीय लोग इसी दोनों नाम से संबोधित करते हैं।
बता दें कि यह बादशाही पोखरा जौनपुर जिला मुख्यालय से 23 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में खेतासराय थाना क्षेत्र के मानेछा गांव में स्थित है जनपद की तहसील शाहगंज से लगभग 12 किलोमीटर दूर व खेतासराय बाजार से ढाई किलोमीटर दूरी पर स्थित है।
स्थानीय लोगों के अनुसार यह पोखरे का इतिहास है कि वह बादशाहों के जमाने का है लेकिन किस बादशाह के समय का है इसकी पुष्टि नहीं है स्थानीय लोगों के पूर्वजों के अनुसार बताया जाता है कि यह लगभग 200 वर्ष पूर्व का है जिसका रकबा 500 बीघे में था, जिसमें 52 बीघा पानी-पानी रहता था, लेकिन अब 20 बीघे में पानी बचा है।
जिसके चारों ओर पुल बने हुए थे जो अब टूट कर खत्म हो गया हैं जिसका थोड़ा अवशेष दक्षिणी छोर पर बाकी है तालाब के चारों तरफ भीटा (मिट्टी का ऊंचा टीला) आज भी मौजूद है। भीटा लगभग जमीन से 25 से 30 फीट ऊंचा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि इसकी ऊंचाई अब तक इतना है तो 200 वर्ष पूर्व कितना रहा होगा स्थानीय लोगों ने बताया कि इस टीले पर चढ़कर दूर तक देखा जा सकता था।
तालाब के चारों तरफ बना पुल टूटकर खत्म हो गया है लेकिन पुल का निचला हिस्सा अभी भी बचा हुआ है जो दक्षिण भाग में मौजूद है एक कोने में भीटे पर एक छोटा सा मस्जिद बना हुआ है स्थानीय लोगों ने बताया कि यह मस्जिद भी बादशाहों द्वारा बनवाया गया होगा क्योंकि इसका भी बनाए जाने को लेकर किसी को कोई जानकारी नहीं है।
मस्जिद होने से लोगों ने अंदाजा लगाया है कि शासन करने वाला बादशाह कोई मुस्लिम ही रहा होगा।
मनेछा ग्राम प्रधान पति सिराज अहमद के अनुसार हमारा घर पोखरे के समीप ही है। स्कूल के मुस्लिम बच्चे और यहां के कुछ ग्रामीण नमाज अदा करते हैं, उन्होंने बताया कि हमारे दादा हफीजुल्ला जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे उन्होंने इस मस्जिद का जीर्णोद्धार 1966 में तब करवाया था जब यह गिर गया था। उस समय दादा और परिवार के लोग यहां नमाज अदा करते थे।
प्रधान पति सेराज अहमद के अनुसार 2005 में जगदीश सोनकर विधायक थे उनके द्वारा यहां का जीर्णोद्धार करने के लिए एस्टीमेट बनवाया गया था, जिसकी कुल राशि 52 लख रुपए थी लेकिन बाद में धन का अभाव हुआ और कार्य नहीं हो पाया तब से किसी जनप्रतिनिधि ने ध्यान नहीं दिया। यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग निवास करते हैं, हंसराज नामक ग्रामीण कहते है कि यहां हिंदू-मुस्लिम में बड़ा ही अच्छा तालमेल रहता है सभी भाईचारे की तरह रहते हैं शादियों में हमारा उनके यहां तो उनका हमारे यहां आना-जाना रहता है, इसका एक जीता जागता प्रमाण यह भी है कि बादशाह के जमाने से बना यह तालाब जहां एक तरफ मस्जिद बना हुआ है उसके ठीक सामने पोखरे के दूसरी छोर उत्तरी दिशा में भीटे पर ही मंदिर का निर्माण कराया गया है। जहां लोग पूजा पाठ करते हैं व शिवरात्रि के दिन भव्य मेले का आयोजन भी होता है। भीटे के दूसरी तरफ मस्जिद के पीछे हाईवे रोड पर दो मंदिर बने हुए हैं जिसमें एक शिवजी व बजरंगबली का है और यहां रामलीला भी होता है।
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