नक्सली गतिविधियों के दृष्टिगत एनआईए टीम ने सीमा आजाद के घर ली चप्पे चप्पे की गहन तलाशी


नक्सली गतिविधियों व फंडिंग मामले में जांच के लिए पहुंचे एनआईए अफसरों ने गहन छानबीन की। प्रयागराज स्थित रसूलाबाद में पीयूसीएल प्रदेश अध्यक्ष सीमा आजाद के घर के चप्पे-चप्पे की तलाशी ली गयी। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों लैपटॉप, मोबाइल के साथ ही दस्तावेजों व साहित्य की भी पड़ताल की। इसके बाद इन्हें सील करते हुए अपने कब्जे में ले लिया। इसमें उनकी मैगजीन, आलेख व कविता कोश भी शामिल रहे।
सूत्रों के मुताबिक, एनआईए की टीम ने सीमा आजाद के घर पहुंचने के बाद सबसे पहले उनसे व उनके पति विश्वविजय से पूछताछ की। उन पर दर्ज देशद्रोह के मामले व पूर्व में लगे आरोपों के संबंध में भी कुछ सवाल पूछे। करीब घंटे भर तक पूछताछ के बाद घर की तलाशी शुरू की गई। एनआईए की टीम ने चप्पे-चप्पे की तलाशी ली। इसके बाद मौके पर भारी मात्रा में मिले दस्तावेजों की गहनता से पड़ताल शुरू हुई।
दस्तावेजों की पड़ताल के साथ ही लैपटॉप, मोबाइल भी कब्जे में ले लिया। फिर इनकी भी जांच की गई। मोबाइल में कॉन्टैक्ट लिस्ट से लेकर व्हाट्सएप चैट तक खंगाले गए और इनके स्क्रीनशॉट भी लिए गए। सुबह पांच बजे से लेकर शाम छह बजे तक करीब 13 घंटे तक जांच पड़ताल करने के बाद एनआईए की टीम वापस लौट गई। इसी तरह मेंहदौरी में मनीष आजाद व धूमनगंज में सत्येश विद्यार्थी के ठिकानों पर भी गहन छानबीन की गई। उनके नक्सली मूवमेंट से कनेक्शन के संबंध में व्यापक पड़ताल की गई।            
सीमा आजाद व उनके पति विश्वविजय ने खुद को परेशान किए जाने का आरोप लगाया है। एनआईए की कार्रवाई के दौरान ही पहले विश्वविजय व बाद में सीमा ने मीडिया से बात की। विश्वविजय ने आरोप लगाया कि चुनाव आने वाला है। ऐसे में फासिस्ट सरकार एनआईए, एटीएस जैसी अपनी संस्थाओं का इस्तेमाल लोगों को परेशान करने व उन्हें डराने के लिए कर रही है। आज लोकतंत्र खत्म हो गया है। आरोप लगाया कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर बोलने वालों की आवाज बंद कराई जा रही है। उधर, सीमा ने कहा कि बार-बार पूछने पर भी एनआईए अफसरों ने कोई जवाब नहीं दिया। आशंका जताई कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है। हालांकि, शाम को यह आशंका गलत साबित हुई।
सीमा आजाद पीयूसीएल की प्रदेश उपाध्यक्ष हैं और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही दस्तक नामक मैगजीन भी निकालती हैं। उनके पति विश्वविजय प्रबंधन में सहयोग करते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक सीमा व उनके पति को छह फरवरी 2010 को प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) से जुड़े होने व गैरकानूनी गतिविधियाें में संलिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इलाहाबाद जंक्शन के बाहर उन्हें तब गिरफ्तार किया गया था, जब वह दिल्ली से लौटे थे। हालांकि, एफआईआर के मुताबिक, उन्हें एसटीएफ ने खुल्दाबाद के लूकरगंज से गिरफ्तार किया। पुलिस ने उनके कब्जे से मिले बैग से प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) से जुड़े कई दस्तावेज बरामद करने का दावा किया था। करीब ढाई साल तक जेल में रहने के बाद उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
इस कार्रवाई को एनआईए ने बेहद गोपनीय रखा। हाल यह रहा कि दो आला अफसरों को छोड़कर इस कार्रवाई की सूचना अन्य किसी को नहीं लगी। जिन क्षेत्रों में छापा मारा जाना था, वहां की स्थानीय पुलिस को भी सूचित नहीं किया गया। पुलिस लाइन से रातों रात पुलिसकर्मियों की टीम तैयार की गई, लेकिन उन्हें यह नहीं बताया गया कि उन्हें किस जगह और क्यों जाना है। भोर में पांच बजे के करीब एनआईए की टीम चार अलग-अलग टुकड़ियों में बंट गई और फिर चारों टीमें अपने-अपने साथ फोर्स को लेकर आगे बढ़ीं। संबंधितों के घर के बाहर पहुंचने के बाद ही पुलिसकर्मियों को बताया गया कि इस घर की तलाशी ली जानी है।
एनआईए की कार्रवाई की जानकारी मिलने पर पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर सीमा आजाद के घर पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि वह वास्तविक तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने गए थे। सीमा आजाद ने अपने घर से बाहर आकर बताया कि उन पर मात्र राजनीतिक कारणों से कार्रवाई की जा रही है। पूर्व आईपीएस ने कहा कि उन्होंने सीमा को अपना मोबाइल नंबर दिया और आश्वस्त किया कि जिस हद तक यह सामने आता है कि उनके खिलाफ गलत उद्देश्यों से कार्रवाई की गई है, उस हद तक आजाद अधिकार सेना उनके साथ खड़ी रहेगी। साथ ही यह भी कहा कि मौजूदा सरकार में पुलिस एजेंसियों के दुरुपयोग की लगातार शिकायतें आ रही हैं। यह लोकतंत्र के लिए घातक है।
एनआईए की ओर से मंगलवार को शहर में की गई कार्रवाई के बाद इंटेलिजेंस पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल यह है कि आखिर पुलिस की इंटेलिजेंस इकाई के अफसरों को यह इनपुट क्यों नहीं मिला। उन्हें कैसे नहीं पता चला कि बीच शहर में भी नक्सल गतिविधियों को बढ़ाने से संबंधित गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। जानकारों का कहना है कि ऐसी चूक बेहद भारी पड़ सकती है क्योंकि एक साल बाद ही यहां कुंभ जैसा आयोजन होना है जिस पर पूरे विश्व की निगाह होगी।
सूत्रों का कहना है कि एनआईए को पिछले साल ही इस बात की भनक लग गई थी कि यूपी के कई जनपदाें में नक्सलाइट मूवमेंट को फिर से मजबूत किए जाने को लेकर गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। इनमें प्रयागराज का भी नाम शामिल था। इसके बाद एनआईए जानकारी जुटाने में लग गई जिसमें इनपुट के संबंध में कुछ तथ्य भी सामने आए। इसके बाद ही लखनऊ स्थित जोन कार्यालय में एफआईआर दर्ज कर एनआईए के अफसरों ने इन गतिविधियों में लिप्त लोगों पर शिकंजा कसना शुरू किया।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर एनआईए को एक साल पहले ही यह इनपुट मिल गया था तो पुलिस की स्थानीय इंटेलिजेंस को इसकी भनक कैसे नहीं लगी। कुंभ व माघ जैसे आयोजन काे लेकर प्रयागराज पहले भी संवेदनशील माना जाता रहा है। यमुनापार के कुछ इलाके नक्सल मूवमेंट को लेकर पहले भी चर्चा में आ चुके हैं। इसके बावजूद इंटेलिजेंस की ओर से इस संबंध में कोई सक्रियता नहीं बरती गई। जिसे लेकर तमाम तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। गौरतलब है कि स्थानीय गतिविधियों की गोपनीय तरीके से रिपोर्ट तैयार कर इंटेलिजेंस की टीम अपनी रिपोर्ट लखनऊ में आला अफसरों को देती है। जिससे किसी भी
प्रयागराज में इंटेलिजेंस की नाकामी का यह काेई पहला मामला नहीं है। इससे पहले अटाला में जुमे की नमाज पर हुई हिंसा के मामले में भी इंटेलिजेंस की बड़ी चूक सामने आई थी। इतने बड़े पैमाने पर हिंसा फैलाने की साजिश हफ्तों से रची जा रही थी लेकिन इंटेलिजेंस को कोई जानकारी नहीं थी। इसी तरह उमेश पाल हत्याकांड की साजिश अहमदाबाद और बरेली जेल से रची जाती रही। साजिशकर्ता शहर में ही रहकर इतनी बड़ी घटना प्लान करते रहे और इंटेलिजेंस के अफसरों की नींद नहीं टूटी। नतीजतन ऐसी वारदात हुई, जिसने न सिर्फ सरकार की किरकिरी कराई बल्कि कानून व्यवस्था को लेकर भी विपक्ष को हमलावर होने का मौका दिया।

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