जमानत को लेकर हाईकोर्ट का यह आदेश जानें कितना लाभकारी है याचिका कर्ताओ के लिए,सरकार और महानिदेशक को पत्र
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत याचिकाओं पर विचार करते हुए अभियोजन की कार्रवाई पर गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि समय पर समन तामील होने में देरी, दंडात्मक कार्यवाही करने में पुलिस की असमर्थता से मुकदमे की सुनवाई देरी से शुरू हो रही है। इस वजह से अभियुक्तों को समय पर जमानत नहीं मिल पा रही है, जो उनके मौलिक और जमानत प्राप्त करने के अधिकार का उल्लंघन है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति अजय भनोट ने याची भंवर सिंह के साथ तीन अन्य की जमानत अर्जियों पर सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने याचियों को निजी मुचलके और दो प्रतिभूतियों पर रिहा करने का आदेश भी दिया है। कोर्ट ने कहा कि देरी की वजह से संविधान की धारा 21 के तहत त्वरित सुनवाई के आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और पुलिस विभाग की इन विफलताओं के परिणामस्वरूप जमानत के अधिकार का निष्पक्ष रूप से विचार नहीं हो पर रहा है।
कोर्ट ने कहा कि पुलिस का दायित्व है कि समन की तामीली और दंडात्मक प्रक्रियाओं के निष्पादन को वह समयबद्ध तरीके से करे लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। इससे दंड व्यवस्था में प्रणालीगत दोष नजर आता है, जो न्याय वितरण प्रणाली की विश्वसनीता को खतरे में डालती है।
कोर्ट ने गवाहों की अनिवार्य उपस्थिति के लिए पुलिस अधिकारियों को नोडल अधिकारी बनाए जाने का भी सुझाव दिया है। कहा कि पुलिस विभाग में जवाबदेही की प्रभावी प्रणाली विकसित करने पर यूपी सरकार को विचार करने की जरूरत है। कोर्ट ने अपने आदेश की कॉपी यूपी सरकार के साथ, पुलिस महानिदेशक को भी भेजने का निर्देश दिया है, जिससे कि इस संबंध में उपयुक्त कदम उठाए जा सकें। मामले में याचियों के खिलाफ मैनपुरी के ओंछा थाने में आईपीसी की धारा 302, 147, 148 और 149 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।
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