इमाम हुसैन की दयालुता और उदारता हमारे लिए आदर्श है-एस एम मासूम

जौनपुर। ऐतिहासिक शहर जौनपुर में माहे मुहर्रम का चाँद होते ही पहली मुकर्रम से सवा दो महीने हुसैन के चाहने वालों  को इमाम हुसैन  का ग़म मनाते और शहादत पे आंसू बहाते  देखा जा सकता है | नगर से लेकर गांव तक सभी अजाखानों में प्रत्येक दिन मजलिसों का आयोजन किया जाता है जिसमे सभी धर्म के लोग मिल के कर्बला के शहीदों को याद करते हैं और इंसानियत का पैगाम देने वाले नवासा ऐ रसूल इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं | मजलिस के बाद जुलूस ऐ अज़ा बरामद होता है जिसमे कर्बला की निशानियों  अलम , ताज़िया , तुर्बत , ज़ुल्जिनाह के साथ और अंजुमनें नौहा मातम करती हैं।
मुंशी लछमण नारायण सखा लिखते हैं 
नज़र आ जाती है बज़्म ऐ अज़ा से राह जन्नत की
शहीद ए कर्बला के ग़म में जब रो कर निकलते हैं
आज मुहर्रम की पांचवी तारिख है और इसी सिलसिले में जौनपुर के क़दीमी इमामबाड़े बड़े इमाम से बाद मजलिस जुलुस ऐ अज़ा बरामद हुआ |  ज़ाकिर ऐ अहलेबैत सय्यद मोहम्मद मासूम ने खिताब करते हुए पैगाम दिया की इमाम हुसैन अ.स और उनके साथी जिन्होंने कर्बला में इमाम हुसैन शहादत दी आज भी हमारे लिए आदर्श हैं , जिनके चरित्र और  की हमें प्रशंसा करनी चाहिए और उनके जैसा बनने की आकांक्षा करनी चाहिए। इमाम हुसैन अ.स की दयालुता और उदारता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है की दुश्मन के लश्कर को गर्म रेगिस्तान में जब प्यासा देखा तो उन्हें और उनके जानवरों को भी पानी पिलाया |जब इमाम हुसैन अ.स का एक गुलाम जॉन शहीद हुआ जो की रंग में काला भी था तो इमाम हुसैन ने जंग में उसके गाल मिला के उससे प्रेम किया और मानव  जाती को अत्यंत श्रद्धा और समानता का पैगाम दिया।


कर्बला में इमाम हुसैन (अ स ) का परिवार शहीद होता रहा जवान बेटा मारा गया जवान भाई मारा गया , दोस्त गए ,6 महीने के बेटे अली असगर को भी ज़ालिमों ने शहीद कर दिया लेकिन इमाम हुसैन ने दैर्य का साथ नहीं छोड़ा और ज़ालिम यज़ीद की बादशाहत की नीव को हिलाते हुए ज़ुल्म से लोगों को बचाते हुए शहीद हो गए । हमें कर्बला के सबक को आत्मसात करते हुए अच्छाई की तरफ इंसानियत की तरफ लोगों को बुलाते हुए समाज में बुराइयों के खिलाफ , ज़ुल्म के खिलाफ आतंकवाद के खिलाफ इमाम हुसैन के मिशन को आगे बढ़ाते रहना चाहिए क्यों की यही मार्ग शांति, संतुष्टि, सफलता और मोक्ष का मार्ग है।
इस जुलूस में शहर जौनपुर के हज़ारों लोग मौजूद रहे और यह जुलुस इमाम बाड़ा बड़े इमाम से निकल के शाही पुल्ल ,चहारसू , कोतवाली से होता हुआ कल्लू के इमामबाड़े में ख़त्म हुआ ।

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