एक बार फिर बाहर आया खाद्यान्न के घोटाले का जिन्न, जांच पुन: शुरू जानें किस पर गिरेगी गाज
जौनपुर। जनपद में ग्रामीण क्षेत्र के अकुशल श्रमिकों के लिए वर्ष 2003-2004 में लागू संपूर्ण रोजगार योजना काम के बदले अनाज में बड़े पैमाने पर खाद्यान्न का घोटाला हुआ है। इसकी जांच 2005 से ही आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) कर रही है। हालांकि, बीच में जांच प्रक्रिया ठंडे बस्ते में डाल दी गई।लेकिन अब एक बार फिर जांच शुरू होने के साथ दोषियों की तलाश की जाने लगी है, लेकिन इससे जुड़ी कोई पत्रावली ब्लॉकों में नहीं मिल रही है। योजना के तहत एक दिन काम के बदले श्रमिक को छह किलो अनाज व 28 रुपये मिलते थे। इसके लिए कूपन मजदूर को दिए जाते थे, इसके बाद कोटेदार खाद्यान्न देता था।
श्रमिकों को काम के बदले अनाज की व्यवस्था तत्कालीन सरकार द्वारा बनाई गई थी। श्रमिक इस योजना से लाभान्वित होकर खुद को काफी खुश महसूस कर रहे थे। वर्षों तक श्रमिकों को इसका लाभ भी मिलता रहा, लेकिन आगे चलकर वर्ष 2004-05 में ब्लाक व कोटेदारों की मिलीभगत से जिले भर के श्रमिकों के हजारों क्विंटल खाद्यान्न हड़प कर लिया गया। उस समय इसकी जांच भी कराई गई।
कार्रवाई से पूर्व ही मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। जिलाधिकारी अनुज कुमार झा द्वारा आरोपियों पर कार्रवाई का आदेश दिए जाने के बाद एक बार फिर विभाग में खलबली मच गई है। जल्द ही घोटाले में शामिल कोटेदारों व कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो सकता है।
योजना के तहत उस समय सरकार द्वारा खाद्यान्न सीधे ब्लाक मुख्यालयों पर भेजा जाता था। जहां से कोटेदार अपने निजी साधन से उसे अपनी दुकान पर ले जाता था। वर्तमान समय में जैसा श्रमिकों को रोजगार के लिए मनरेगा संचालित है। उस समय जवाहर रोजगार योजना चलाई जा रही थी। श्रमिकों की मजदूरी का आधा भुगतान नकदी व आधे का उन्हें खाद्यान्न दिया जाता था।
श्रमिक भी इस योजना के तहत सस्ते दामों पर खाद्यान्न पाकर खुश थे। वर्ष 2004-05 में जिले के सभी ब्लॉकों के जिम्मेदार कर्मचारियों ने श्रमिकों के नाम फर्जी कूपन कोटेदारों को भेज कर खाद्यान्न ब्लाक मुख्यालयों पर ही गड़प कर लिया। बाद में जिले के सभी ब्लॉकों के जिम्मेदारों ने यही खाद्यान्न खुले बाजार में बेचकर करोड़ों रुपये की अवैध कमाई कर लिया।
श्रमिकों के नाम की कोटेदारों को एक सूची ब्लाक मुख्यालय से भेजी जाती थी। उस आधार पर कोटेदार उनके नाम का खाद्यान्न वितरण कर अपने रजिस्टर में खारिज कर देता था। जिला मुख्यालय से कूपन (रसीद) की गड्डियां ब्लाक पर भेजी जाती थीं, जिसे कोटेदारों को भेजा जाता था। इसी आधार पर श्रमिकों को खाद्यान्न वितरित किया जाता था।
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