एक बड़ा सवाल : आखिर यूपी मे कब तक चलेगा कार्यवाहक डीजीपी के भरोसे पुलिस प्रशासन


उत्तर प्रदेश पुलिस को नया कार्यवाहक डीजीपी मिलने के बाद एक बार फिर सबकी नजरें संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) को स्थायी डीजीपी चुने जाने के लिए भेजे जाने वाले प्रस्ताव पर टिक गई हैं। कार्यवाहक डीजीपी बनाए जाने के सबसे लंबे दौर का सामना कर रहे पुलिस विभाग में अभी यह कौतूहल बरकरार है कि आखिर प्रदेश को स्थायी डीजीपी कब मिलेगा। प्रदेश सरकार यदि स्थायी डीजीपी बनाने का प्रस्ताव आयोग को भेजने में फिर देर करती है तो एक जून को एक बार फिर से कार्यवाहक डीजीपी से ही काम चलाना पड़ सकता है।
दरअसल, मुकुल गोयल को हटाने के बाद स्थायी डीजीपी बनाए जाने को लेकर यूपीएससी के साथ खींचतान जारी है। सूत्रों की मानें तो इसी वजह से मार्च माह में डीएस चौहान के सेवानिवृत्ति के बावजूद आयोग को प्रस्ताव नहीं भेजा गया और फिर से कार्यवाहक डीजीपी बनाने का निर्णय लिया गया।
गौरतलब है कि प्रदेश पुलिस में कार्यवाहक डीजीपी बनाए जाने का यह सबसे लंबा दौर साबित हो रहा है। मई में आरके विश्वकर्मा यदि सेवानिवृत्त हो जाते हैं तो 13 माह तक कार्यवाहक डीजीपी बनाए जाने का जिक्र प्रदेश पुलिस के इतिहास में दर्ज हो जाएगा। इस खींचतान का नुकसान कई डीजी रैंक के अफसरों को उठाना भी पड़ा है। डीएस चौहान से वरिष्ठ होने के बावजूद आरके विश्वकर्मा को बाद में कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया। इसी तरह आरपी सिंह, जीएल मीणा, अनिल अग्रवाल का नाम इस फेहरिस्त में जुड़ नहीं सका।
दरअसल, राज्य सरकार अगर फिर से आयोग को प्रस्ताव भेजती है तो इस पर फिर से मंथन होगा कि पिछले साल जून में भेजे गए प्रस्ताव को डीजीपी के चयन का आधार माना जाए अथवा नए प्रस्ताव के मुताबिक निर्णय लेते हुए पैनल भेजा जाए। यदि आयोग जून में भेजे गए प्रस्ताव को आधार मानती है तो आरके विश्वकर्मा के स्थायी डीजीपी बनने का रास्ता साफ हो सकता है। वहीं, नए प्रस्ताव में उनकी सेवानिवृत्ति में केवल दो माह शेष होने की वजह से फिर अड़चन आ सकती है।

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