आखिर गूजर ताल में क्यों नहीं आ रहे है विदेशी मेहमान,जिम्मेदार कौन?
जौनपुर। ठंड आते ही विदेशी मेहमान पक्षियों की आवक से गुंजायमान रहने वाला खेतासराय क्षेत्र के खुदौली में स्थित गूजर ताल अभी तक सूना पड़ा हुआ है। खेतासराय से तीन किलोमीटर दूर खुदौली गांव में स्थित गूजर ताल 989 बीघा का जल क्षेत्र तथा 10 बीघा में मत्स्य हैचरी है। वर्ष 2005 में हैचरी को घाटे में दिखाकर प्रदेश सरकार ने यहां मत्स्य उत्पादन बंद कर दिया था।
गूजर ताल को वर्ष 1957 में मत्स्य प्रक्षेत्र घोषित किया गया था। इस ताल में लंबे समय से ठंड के मौसम में साइबेरियन पक्षियों की आवक होती थी। पूरा ताल प्रक्षेत्र फ्रांस रूस साइबेरिया टर्की आदि ठंडे देशों से आने वाले कैमर, लहक्षन, टिकई, चैता, पोछार, साइबेरियन बगुला आदि विभिन्न प्रजाति के पक्षियों से गुलजार रहता था। तीन माह ठंड के मौसम में प्रवास करने के बाद मार्च के महीने अपने देश लौट जाते थे, लेकिन शिकारियों की कुदृष्टि के चलते मेहमान परिंदों ने अपना रास्ता बदल दिया है। प्रशासनिक लापरवाही के चलते गूजर ताल से सटे नौली, गोधना म्हरौड़ा, रानीमऊ, मैनुद्दीनपुर के शिकारियों ने हर साल मेहमान परिंदों का शिकार करना शुरू कर दिया। कभी ताल फनिया लगा कर तो कभी जहरीली दवा से बेहोश करके शिकारी अपना शिकार करते रहे। पक्षियों के मांस के शौकीन उन्हें महंगे दाम पर खरीदते हैं।
विदेशी परिंदों के हो रहे अंधाधुंध शिकार के चलते ताल में विदेशी मेहमानों की आवक लगातार घटती जा रही है। नवंबर का आधा महीना बीत गया है। सुबह शाम ठंड भी पड़ने लगी है। लेकिन मेहमान परिंदे गूजर ताल से रूठ चुके हैं। वन विभाग इसकी वजह ताल में मछली पकड़ने के लिए शिकारी नावों का संचालन बता रहे हैं।
खबर है कि गूजर ताल के मत्स्य प्रक्षेत्र को मछली पालन के लिए ठीके पर दे दिया गया है। मछली पकड़ने के लिए हर समय ताल में नाव चलती रहती है। जिसके कारण पक्षियों को दिक्कत होती है। इसलिए ताल में विदेशी मेहमानों का आगमन कम हो रहा है। शिकारियों पर नियंत्रण के लिए समय-समय पर छापेमारी की जाती है।
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