प्रतिबन्धित और नशीली दवाओ की बरामदगी को लेकर ड्रग इन्सपेक्टर को कटघरे में खड़ा कर रहे है महेन्द्र गुप्ता ,जानें क्या है आरोप
जौनपुर। जिला मुख्यालय की नाक के नीचे और निर्माणाधीन मेडिकल कॉलेज के समीप सरकारी दवाओं के साथ प्रतिबंधित नशीली दवाओं का जखीरा मिलना चौकाने वाला तो है ही साथ ही साथ कई सवाल खड़े करता है। जहां एक तरफ सवाल उठता है कि इस तरह की गुणवत्ताहीन दवाओं के साथ-साथ नशीली और सरकारी दवाएं मेडिकल स्टोर तक इतनी बड़ी मात्रा में कैसे पहुंच रही हैं और इन दवाओं की आपूर्ति के स्रोत क्या है? क्या सचमुच चंगुल में आया यह मामला स्वयं मगरमच्छ है या उस तालाब की एक छोटी मछली जहां से यह खेल बदस्तूर जारी है। वहीं दूसरी तरफ सवाल यह भी उठता है कि उच्च अधिकारियों तक पहुंच जाने वाली यह महत्वपूर्ण सूचना से प्रतिदिन छापेमारी कर रहे संबंधित ड्रग इंस्पेक्टर कैसे अनजान रह गए? इस मामले का खुलासा उक्त ड्रग इंस्पेक्टर की कार्यशैली और क्षमता दोनों पर सवालिया निशान लगाता है। ज्ञातव्य रहे कि वर्तमान ड्रग इंस्पेक्टर ने जनपद में अपनी पहली नियुक्ति लेकर फरवरी माह में कार्यभार संभाला था। इन चार-पांच महीने के दौरान उन्होंने 500 से भी ज्यादा दवा प्रतिष्ठानों पर औचक निरीक्षण कर जांच पड़ताल की। इनकी कार्यशैली को लेकर एक मजाक चल निकला है। लोग आपस में कहने लगे हैं कि छापेमारी के लिए वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर साहब गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने वाले हैं। लेकिन हालात ऐसे बने हैं छापेमारी के लिए वर्ल्ड रिकॉर्ड बने ना बने, इन 500 से भी ज्यादा निरीक्षण के शून्य परिणाम ने उन्हें सुपर डक या कहें, शून्य परिणाम देने का वर्ल्ड चैंपियन बनाकर गिनीज बुक में नाम जरूर दर्ज करा दिया। यह शोध का विषय अवश्य होगा कि धुआंधार छापेमारी के दौरान साहब के तीर निशाने पर नहीं लगे या उन्होंने लगने ही नहीं दिया गया। मीडिया रिपोर्टों में इसकी चर्चा महीनों पहले से चल रही है और लगे हुए आरोप गंभीर किस्म के हैं। इस संदर्भ में जनपद के अग्रणी दवा संगठन केमिसट एंड कास्मेटिक एसोसिएशन के अध्यक्ष महेन्द्र गुप्ता का बयान संज्ञान में लिया जा सकता है। सिद्दीकपुर के पास मेडिकल एजेंसी से मिली अवैध नशीली और सरकारी दवाओं पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि ड्रग इंस्पेक्टर भयादोहन और उगाही के लिये ही छापेमारी करते हैं। इस तरह की कई गतिविधियां उनके संरक्षण में पनप रही हैं।
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