एक बोरी यूरिया की जगह सिर्फ आधे लीटर लिक्विड से चल जाएगा काम, जानें कैसे


 

अशोका इंस्टीट्यूट के एमबीए स्टूडेंट्स ने किया फूलपुर इफको का इंडस्ट्रियल विजिट

वाराणसी। अशोका इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी एंड मैनेजमेंट के एमबीए स्टूडेंट्स ने प्रयागराज के फूलपुर स्थित इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड (इफको) प्लांट में नैनो यूरिया के उत्पादन, विपणन और गुणवत्ता के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की। यह वह खाद है जो आधा लीटर की शीशी में एक बोरी यूरिया से कहीं ज्यादा काम करती है। इससे न सिर्फ उत्पादन बढ़ता है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी अच्छी होती है। इंस्टीट्यूट के एमबीए स्टूडेंट्स इंडस्ट्रियल विजिट पर इफको प्लांट का भ्रमण करने गए थे।

इफको के ट्रेनिंग मैनेजर अनुराग त्रिपाठी ने अशोका इंस्टीट्यूट के स्टूडेंट्स को नैनो तरल यूरिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी और बताया कि नैनो तरल यूरिया उपज बढ़ाने का एक ऐसा साधन है, जिससे खेती की लागत में भी कमी आती है। फसलों में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए किसान अब तक दानेदार यूरिया का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। इसका इस्तेमाल करने पर आधे से भी कम हिस्सा पौधों को मिलता था, बाकि जमीन और हवा में चला जाता था। मई 2021 में इफको ने नैनो यूरिया को लॉन्च किया था। इसके इस्तेमाल से धान, आलू, गन्ना, गेहूं और सब्जियों की फसलों पर बहुत अच्छे नतीजे मिले हैं। 500 लीटर की यूरिया की शीशी पूरे एक एकड़ खेत के लिए काफी है। साथ में इसका प्रयोग करने से पर्यावरण,जल और मिट्टी में जो प्रदूषण हो रहा है वो नहीं होगा। इसका ट्रांसपोर्टेशन और रखरखाव खर्च बहुत सस्ता है। अगर पहले किसान को 10 बोरी यूरिया ले जाना हो तो ट्रैक्टर लाना चाहिए। लेकिन नैनो तरल यूरिया की 10 बोतल को किसान एक झोले में रखकर मोटर साइकिल पर लेकर आसानी से जा सकता है।

नैनो तरल यूरिया की खूबियां गिनाते हुए श्री वर्मा के मुताबिक एक रैक (52000 बोरी) यूरिया की ढ़ुलाई मालगड़ी से की जाती है, जबकि नैनो तरल यूरिया की 52000 बोतलें सिर्फ एक ट्रक में ही आ जाएंगी। भारी भरकम गोदाम की जरुरत नहीं होगी। इससे लागत कम आएगी तो किसानों को सस्ती खाद मिलेगी। नैनो तरल यूरिया का उपयोग फसल की पत्तियों पर छिड़काव के माध्यम से करते हैं। छिड़काव के लिए एक लीटर पानी में 2-4 मिलीलीटर नैनो यूरिया मिलाना होता है। एक फसल में दो बार नैनो यूरिया का छिड़काव पर्याप्त होता है। नैनो तरल यूरिया के कणों का साइज इतना कम है कि ये पत्ती से सीधे पौधे में प्रवेश कर जाता है। साधारण यूरिया को पौधा आयन (Lon) के रूप में लेता है और नैनो यूरिया को पार्टिकल के रूप में। नैनो यूरिया से पौधे बहुत अच्छे तरीके नाइट्रोजन ग्रहण कर पाते हैं।

इफको का विजिट कराते हुए प्लांट के अधिकारी रहमान ने स्टूडेंट्स को बताया कि इफको की फूलपुर यूनिट देश के उत्कृष्ट खाद उत्पादन यूनिट में से एक है जो ऊर्जा संरक्षण और प्रबंध के अलावा कई अवार्ड हासिल कर चुकी है। साल 2012 में सर्वश्रेष्ठ उत्पादन कार्य निष्पादन में पहला पुरस्कार मिला है। इसके अलावा इसे ऊर्जा संरक्षण, ऊर्जा प्रबंधन, पानी के कारगर उपयोग के लिए भी पुरस्कार मिल चुके हैं। साल 1974 में फूलपुर इफ्को के इस प्लांट की नींव रखी गई थी। 1068 एकड़ इलाके में अमोनिया 1981 में शुरू हुआ था और यूरिया प्लांट में साल 1997 में काम शुरू हुआ था। फिलहाल यह यूनिट 17 लाख मैट्रिक टन नीम परत वाले यूरिया का उत्पादन करती है, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों की खाद की जरूरतों की पूर्ति करती है।
अशोका इंस्टीट्यूट में एमबीए के डीन सीपी मल्ल ने कहा कि भविष्य में स्टूडेंट्स के लिए इस तरह के और भी इंडस्ट्रियल विजिट कराए जाएंगे। एमबीए के विभागाध्यक्ष ने राजेंद्र तिवारी ने कहा कि इस तरह के विजिट से बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ ही फिल्ड की व्यावहारिक जानकारी बढ़ेगी। इंडस्ट्रियल विजिट में इंस्टीट्यूट के एमबीए शिक्षक विनय कुमार तिवारी और आदित्य सिंह यादव ने स्टूडेंट्स को इफको प्लांट विजिट में सहयोग दिया। इंडस्ट्रियल विजिट में एमबीए प्रथम वर्ष के सभी स्टूडेंट्स शामिल थे। 

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