कोशिश के सौजन्य से काव्य गोष्ठी में इन गजलों और छन्दो की हुई बरसात,"अंधेरा खुद दिये राह में आने से डरता है"


जौनपुर। मनीषी विद्या मंदिर लाइन बाजार साक्षी बना गीतों, ग़ज़लों और‌ छंदों की बरसात का।अवसर था कोशिश की मासिक काव्य-गोष्ठी का जिसकी अध्यक्षता की प्रख्यात साहित्यकार प्रो पी.सी.विश्वकर्मा ने और मुख्य अतिथि रहे नवोदय विद्यालय की पूर्व प्रवक्ता श्री रामजीत मिश्र। वाणी वंदना के पश्चात सुशील दूबे का अवधी भाषा में गीत--जागा भोर‌ भइल, बोलय चिर‌इया,भजन करा रामजी के भइया। श्रोताओं के मन के तार छेड़ गया। गिरीश जी का मुक्तक  अंधेरा खुद दिये की राह में आने से डरता है, अंधेरे से कभी डर‌के दिये ने सर‌ झुकाया क्या?तम के सदैव हार‌ने की कहानी सुना गया । जनार्दन अष्ठाना का गीत--फागुनी बयार आ गई/ फूल पर  बहार छा गई। गोष्ठी में श्रृंगार का र‌ंग बिखेर गया। अनिल उपाध्याय की कविता इनके साथ होने पर उम्मीदों को पर लगता है पर पुस्तक और पत्नी मोटी हो तो डर लगता है। सटीक असर कर गई।
अशोक मिश्र का गीत--बिन बोले सब बात समझ ले ऐसी होती है बेटी कभी न उर की गठरी खोले ऐसी होती है बेटी श्रोताओं को संवेदित कर गया। प्रोफ़ेसर आर.एन.सिंह की र‌चना दांव पड़ गया उल्टा इनका भइया हक्का-बक्का पता नहीं  ,हैडिल गायब है,पंचर‌ दोनों चक्का राजनीति पर करारा तंज कस गई।प्रो.पी.सी.विश्वकर्मा का शेर इतनी करम नवाज़ थी उसकी वफ़ा कि यार बस बिगड़ा अगर मिज़ाज तो ऐसी जफा कि यार बस, खूब पसंद किया गया ।


गोष्ठी में संजय सागर‌, फूलचंद भारती,अमृत प्रकाश, आशुतोष पाल, रेखा मिश्र, सुमति श्रीवास्तव, अरविंद मिश्र,संजय सेठ, रामकृष्ण पांडेय, राजेश पाण्डेय, सुरेन्द्र यादव, विनोद यादव, राजेन्द्र सिंह, एडवोकेट आदि की सक्रिय भागीदारी रही।आभार श्री मती दमयंती सिंह जी ने और संचालन अशोक मिश्र ने किया।

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