आखिर शिवपाल की चाभी चुनाव आयोग ने क्यों छीन लिया, जानते है क्या है रहस्य


शिवपाल सिंह यादव से उनकी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) (प्रसपा) की 'चाबी' फिसल गई है। प्रसपा अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव 'चाबी' चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़ पाएगी। समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने वाले शिवपाल सिंह यादव अब उसके चुनाव चिन्ह 'साइकिल' पर ही चुनाव लड़ना होगा। प्रसपा से टिकट चाहने वालों में से भी ज्यादातर 'साइकिल' चुनाव चिह्न से ही चुनाव लड़ना चाहते हैं।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा में वर्चस्व को लेकर संघर्ष शुरू हुआ था। अंतत: सपा पर अखिलेश यादव का पूरा अधिकार रहा, वहीं शिवपाल ने वर्ष 2018 में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली थी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में शिवपाल की पार्टी को आयोग ने चाबी चुनाव चिह्न आवंटित किया था। चाबी चुनाव चिह्न के साथ लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरी प्रसपा को महज 0.31 प्रतिशत वोट मिले थे।
लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा का विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें जननायक जनता पार्टी को चाबी चुनाव चिह्न आवंटित हो गया। जननायक जनता पार्टी हरियाणा की राज्य स्तरीय पार्टी के रूप में आयोग में पंजीकृत है। आयोग अब प्रसपा को विधानसभा चुनाव के लिए 'चाबी' चुनाव चिह्न नहीं आवंटित कर रहा है। रजिस्ट्रीकृत मान्यता प्राप्त दल में शामिल प्रसपा को 197 मुक्त चुनाव चिन्हों में से कोई नया आवंटित होगा। प्रसपा पिछले दो वर्ष से चाबी चुनाव चिन्ह को लेकर ही प्रचार कर रही है। ऐसे में अब मिलने वाले नए चुनाव चिन्ह को लेकर प्रदेशवासियों के बीच जगह बनाना प्रसपा के लिए कहीं और कठिन होता दिख रहा है। अंतत: प्रसपा के अस्तित्व को बचाए रखने की बड़ी चुनौती शिवपाल के सामने होगी।
शिवपाल के समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न से चुनाव जीतने पर वह सपा के ही विधायक कहलाएंगे। भविष्य में यदि किसी कारण से शिवपाल व अखिलेश में फिर टकराव की स्थिति आती है तो शिवपाल ही अलग-थलग रह जाएंगे। यह बिलकुल वैसे ही होगा जैसे वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव में शिवपाल जसवंतनगर सीट से सपा के टिकट से चुनाव जीते थे, अलग पार्टी बनाने के बाद भी वे आज भी विधानसभा में सपा के ही विधायक हैं। सपा की व्हिप शिवपाल पर भी लागू होती है। वहीं, सपा से गठबंधन करने वाले रालोद व सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अपने-अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने से वे भविष्य में अखिलेश से खटपट होने पर अपनी राह अलग भी कर सकते हैं।
अखिलेश यादव सोची समझी रणनीति के तहत शिवपाल की पार्टी से विलय के बजाय गठबंधन की बात करते हैं। विलय करने से प्रसपा संगठन के नेताओं को भी अखिलेश को सपा में समायोजित करना होगा। चुनाव के मौके पर सभी का समायोजन संभव नहीं है। ऐसे में गठबंधन की बात अखिलेश कर रहे हैं। ऐसे में अखिलेश को केवल गठबंधन की सीटें ही देनी होंगी।
प्रसपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक मिश्र का बयान आया है कि समाजवाद का नाम और शिवपाल यादव का चेहरा, यही हमारा चुनाव चिह्न है। चाबी चुनाव चिन्ह न मिलने से पार्टी में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। चुनाव चिन्ह आवंटन की प्रक्रिया होती हैं। जल्द ही भारत निर्वाचन आयोग में औपचारिकता पूरी कर नया चुनाव चिह्न आवंटित करा लिया जाएगा।

Comments

Popular posts from this blog

जानिए इंजीनियर अतुल सुभाष और पत्नी निकिता के बीच कब और कैसे शुरू हुआ विवाद, आत्महत्या तक हो गई

घूसखोर लेखपाल दस हजार रुपए का घूस लेते रंगेहाथ गिरफ्तार, एन्टी करप्शन टीम की कार्रवाई

इंजीनियर आत्महत्या काण्ड के अभियुक्त पहुंच गए हाईकोर्ट लगा दी जमानत की अर्जी सुनवाई सोमवार को फैसले का है इंतजार