मृतक आश्रित केश में नौकरी को लेकर विवाहिता बेटी को लेकर हाईकोर्ट ने जानें क्या आदेश दिया है
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि विवाहिता पुत्री मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने की हकदार नहीं है। कोर्ट ने इसके तीन कारण बताए हैं। पहला यह कि शिक्षण संस्थाओं के लिए बने रेग्युलेशन 1995 के तहत विवाहिता पुत्री परिवार में शामिल नहीं है। दूसरा आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती। तीसरा यह कि कानून एवं परंपरा दोनों के अनुसार विवाहिता पुत्री अपने पति की आश्रित होती है, पिता की नहीं।
कोर्ट ने इसी के साथ राज्य सरकार की विशेष अपील स्वीकार करते हुए विवाहिता पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति देने के एकल पीठ के आदेश को रद्द कर दिया है। यह निर्णय कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति एमएन भंडारी एवं न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है। मामले के तथ्यों के अनुसार माधवी मिश्रा ने विवाहिता पुत्री के तौर पर विमला श्रीवास्तव केस के आधार पर मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की। याची के पिता इंटर कॉलेज में तदर्थ प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत थे।
सेवाकाल में उनकी मृत्यु हो गई थी। राज्य सरकार की ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सुभाष राठी का कहना था कि मृतक आश्रित विनियमावली 1995, साधारण खंड अधिनियम 1904, इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम व 30 जुलाई 1992 के शासनादेश के तहत विधवा, विधुर पुत्र, अविवाहित या विधवा पुत्री को आश्रित कोटे में नियुक्ति पाने का हकदार माना गया है। 1974 की मृतक आश्रित सेवा नियमावली कॉलेज की नियुक्ति पर लागू नहीं होती। एकल पीठ ने गलत ढंग से इसके आधार पर नियुक्ति का आदेश दिया है। वैसे भी सामान्य श्रेणी का पद खाली नहीं है। मृतक की विधवा पेंशन पा रही है। ऐसे में जिला विद्यालय निरीक्षक शाहजहांपुर ने नियुक्ति से इनकार कर गलती नहीं की है। याची के अधिवक्ता सीमांत सिंह का कहना था कि सरकार ने कल्याणकारी नीति अपनाई है। विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने पुत्र-पुत्री में विवाहित होने के आधार पर भेद करने को असंवैधानिक करार दिया है और नियमावली के अविवाहित शब्द को रद्द कर दिया है।
हाईकोर्ट के आदेश के तीन प्रमुख कारण:
1 - शिक्षण संस्थाओं के रेग्युलेशन 1995 के तहत विवाहिता पुत्री परिवार में शामिल नहीं।
2 - आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग अधिकार के रूप में नहीं की जा सकती।
3 - कानून एवं परंपरा दोनों के अनुसार विवाहिता पुत्री पति की आश्रित होती है, पिता की नहीं।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि आश्रित की नियुक्ति का नियम जीविकोपार्जन करने वाले की अचानक मौत से उत्पन्न आर्थिक संकट में मदद के लिए की जाती है। साथ ही मान्यता प्राप्त एडेड कॉलेजों के आश्रित कोटे में नियुक्ति की अलग नियमावली है इसलिए सरकारी सेवकों की 1994 की नियमावली इसमें लागू नहीं होगी। साथ ही याची ने छिपाया कि उसकी मां को पारिवारिक पेंशन मिल रही है और वह याची पर आश्रित नहीं है।
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