यूपी में विधानसभा चुनाव को लेकर अब सभी राजनैतिक दल मैदान में वोटरो को साधने में जुटे
कोरोना वायरस संक्रमण का असर उत्तर प्रदेश में लगभग खत्म होने की कगार पर है और विधानसभा चुनाव में भी कुछ ही माह बचे हैं। प्रदेश में इसका साफ असर नजर भी आने लगा है। जनता का भरोसा जीतने और जातीय व क्षेत्रीय समीकरण बनाने व सुधारने के लिए सभी दल मैदान में कूद पड़े हैं। लगातार सक्रिय चल रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बूथ विजय अभियान शुरू कर दिया है तो यात्राओं और सम्मेलनों के जरिए समाजवादी पार्टी (एसपी), बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और कांग्रेस ने भी ताकत झोंक दी है।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद से भाजपा उत्तर प्रदेश में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए है। 2017 में विधानसभा में पूर्ण बहुमत की सपा सरकार को बेदखल कर भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। ऐसा ही परिणाम 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भी दोहराया।
भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए पिछले विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस तो पिछले लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने गठबंधन किया। हालांकि, सफलता नहीं मिली। छोटे दलों को साथ मिलाने के बहाने गठबंधन रास्ते अभी भी विपक्षी दलों ने खोल रखे हैं और साथ ही अपनी-अपनी ताल ठोंकना भी तेज कर दिया है। सत्ताधारी दल के चुनावी अभियान महीनों से चल रहे हैं। अभी बूथ विजय अभियान शुरू किया है और 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन से सेवा समर्पण अभियान भी शुरू होने जा रहा है।
इसी तरह बहुजन समाज पार्टी प्रबुद्ध जन सम्मेलन प्रदेशभर में कर चुकी है और अब नौ अक्टूबर को पार्टी संस्थापक कांशीराम की जयंती पर हर जिले से समर्थक और कार्यकर्ताओं को बुलाकर ताकत का संदेश देना चाहती हैं। समाजवादी पार्टी भी प्रबुद्ध सम्मेलन का दूसरा चरण शुरू करने जा रही है। बूथ स्तर तक पार्टी को सक्रिय करने के लिए भी कदम बढ़ाया है।
वहीं, कांग्रेस छोटे-छोटे कार्यक्रम तो कई कर चुकी है, लेकिन अब पार्टी महासचिव प्रियंका वाड्रा के यूपी दौरे के बाद इसमें तेजी लाने की रूपरेखा तैयार कर ली है। कांग्रेस प्रदेश भर में प्रतिज्ञा यात्रा निकालने जा रही है। इसमें ग्रामीण स्तर तक सक्रियता के कार्यक्रम तय किए गए हैं। इधर, राष्ट्रीय लोकदल ने भी जन आशीर्वाद यात्रा निकालने का ऐलान किया है। इस तरह लगभग सभी दल चुनाव के लिए मैदान में उतर चुके हैं, जिससे दिनों-दिन सूबे का सियासी ताप बढ़ता जाएगा।
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