कल तक पुलिस पर रोब गालिब करने वाले पूर्व आईपीएस ऑफिसर अमिताभ ठाकुर अब इन धाराओं में पहुंचे सलाखों के पीछे
संगीन आरोपों में गिरफ्तार पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर लखनऊ। रेप पीड़िता और उसके सहयोगी के द्वारा 16 अगस्त को नई दिल्ली के सुप्रीम कोर्ट के समक्ष किये गए आत्मदाह के मामले में पूर्व IPS की गिरफ्तारी की गई है। यह गिरफ्तारी मामले की जांच में IPS पर लगे आरोपों के सच होने पर की गई है। उन्हें गोमतीनगर आवास से जीप पर बैठाकर हजरतगंज कोतवाली लाया गया। जाँच के दौरान की गई गिरफ्तारी मामले में बसपा सांसद अतुल रॉय के अलावा पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर दूसरे आरोपी हैं। मामले में यूपी सरकार द्वारा यूपी पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड ,अपर पुलिस महा निदेशक, महिला सुरक्षा और बाल सुरक्षा संगठन की जांच समिति गठित की गई थी। इस सयुंक्त जांच समिति ने अपनी अंतरिम जांच में पीड़िता व उसके सहयोगी के आत्महत्या करने हेतु दुष्प्रेरित करने व उनके सबूतों को गलत ढंग से प्रस्तुत करने समेत पाया। इन्हीं आरोपों में सांसद अतुल रॉय और पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर को प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया है, जिसमें उनके खिलाफ अभियोग पंजीकृत कर विवेचना की जा रही है। इस मामले में लखनऊ पुलिस कमिशनरेट को अग्रिम कार्रवाही के लिए निर्देशित किया गया है।
जिन धराओं में पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी की गई है, वे बेहद संगीन हैं। उनपर लगाईं कुछ धराएं तो नॉन बेलेबिल हैं। इस धाराओं में तो सिर्फ माननीय न्यायालय के विवेक पर ही अमिताभ ठाकुर को जमानत मिल सकती है। साथ ही उन पर लगीं कुछ धाराओं में आरोप साबित होने की दिशा में उन्हें लंबी सजा तक देने के प्रवधान हैं। धारा 120 बी- किसी भी अपराध को अंजाम देने के लिये साझा साजिश,अर्थात कॉमन कॉन्सपिरेसी का मामला बनता है जो गम्भीर गुनाह की श्रेणी में आता है।ऐसे मामलों में धारा 120 ए व 120 बी का प्रावधान है।जिस भी मामले में आरोपियों की संख्या एक से ज्यादा होती है तो पुलिस एफ आई आर में धारा 120ए का जिक्र जरूर होता है।यह जरूरी नहीं कि आरोपी खुद अपराध को अंजाम दे। धारा 120 ए व धारा 120 बी के तहत आरोपी के किसी भी अपराध की साजिश में शामिल होना भी कानून की निगाह में जघन्य अपराध माना गया है। ऐसे में साजिश में शामिल आरोपी को फांसी,उम्रकैद या दो वर्ष व उससे अधिक अवधि के कारावास की दंडनीय सजा का प्रावधान है।इन धारा के तहत आरोपी को अपराध करने वाले के बराबर भी सजा मिलेगी।अन्य मामलों में यह सजा छह महीने की कैद या जुर्माना दोनों हो सकते हैं।
धारा 167- लोक सेवक,जो क्षति कारित करने के आशय से अशुद्ध दस्तावेज रचता है।इस धारा के तहत वह आरोपी माना जाता है।भरतीय दंड सहिंता की धारा 167 के अनुसार जो कोई लोकसेवक होते हुए और ऐसे लोकसेवक होने के नाते किसी दस्तावेज या इलोक्ट्रॉनिक अभिलेख की रचना या अनुवाद करने का भार वहन करते हुए उस दस्तावेज या इलैक्ट्रोनिक अभिलेख की रचना तैयार या अनुवाद ऐसे प्रकार से करे कि जिसे वह जानता हो कि त्रुटिपूर्ण है।इस आशय से जानते हुए करेगा कि वह किसी भी व्यक्ति की नुकसान पहुंचाएगा, तो उसे एक अवधि तक कम से कम वर्ष तक कारावास की सजा बढ़ाई जा सकती है या आर्थिक दंड व दोनो ही दिए जा सकते हैं।कहने का आभिप्राय लोकसेवक द्वारा किसी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के दृष्टिगत त्रुटिपूर्ण दस्तावेज तैयार करना एक जमानती गम्भीर आपरध की श्रेणी में आता है।
धारा 195 ए- इस धारा का अर्थ है किसी व्यक्ति को मिथ्या साक्ष्य देने के लिये धमकी देना।जो कोई अन्य व्यक्ति को उसके शरीर ख्याति या सम्पत्ति व किसी व्यक्ति के,जिसमें वह हितबध्द है,शरीर व ख्याति को उस व्यक्ति से मिथ्या साक्ष्य दिलाने के आशय से किसी अपहानि की धमकी देता है तो ऐसे आरोपी को सात वर्ष सजा तक होने के कानून में प्रावधान हैं।साथ ही जुर्माना व सजा दोनों से दंडित किया जा सकता है।अगर निर्दोष व्यक्ति को ऐसे साक्ष्य के परिणामस्वरूप दोषसिद्ध किया जाता है तो मृत्यु दंड या सात वर्ष से अधिक कारावास से दंडित किया जाता है।आरोपी,जो धमकी देता है,उसी दंड और दंडादेश से उसी ढंग में तथा उसी सीमा तक दण्डित किया जाएगा।
धारा 218-भारतीय दंड सहिंता की धारा 218 के अनुसार,जो कोई लोक सेवक होते हुए और ऐसे लोक सेवक के नाते कोई भी अभिलेख या अन्य लेख तैयार करने का भार रखते हुए उस अभिलेख या लेख की इस प्रकार से रचना करता है जिसे वह जानता है कि अशुद्ध है,लोक या किसी व्यक्ति को हानि पहुंचा सकती है अथवा किसी व्यक्ति को वैध दंड से बचाने के आशय से रचना की जाती है।तो यह दंडनीय अपराध कानून की नजर में माना गया है।इस तरह के आरोप सिद्ध होने पर आरोपी को तीन वर्ष तक की सजा जुर्माना व दोनों सजाओं से दण्डित किया जा सकता है।
धारा 306--भारतीय दंड सहिंता की धारा 306 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है और जो भी व्यक्ति उसे इस तरह की आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करता या उकसाता है,तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किये जाने का प्रावधान है।इस कारावास की सजा को 10 वर्ष तक के लिये बढ़ाया जा सकता है।साथ ही उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है।यह एक गैर जमानती अपराध की श्रेणी में भी आता है।
धारा 504- भारतीय दंड सहिंता की धारा 504 के अनुसार,जो कोई भी व्यक्ति को उकसाने का इरादे से जान बूझकर उसका अपमान करे, इरादतन या यह जानते हुए कि इस प्रकार की उकसाहट,उस व्यक्ति की लोकशान्ति भंग करे या अन्य अपराध का कारण हो सकती है, को किसी एक अवधि के लिये कारावास की सजा हो सकती है जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।इसमे भी आर्थिक दंड देने का प्रावधान है।
धारा 506- जो कोई भी आपराधिक धमकी का अपराध करता है,तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास की सजा दी सकती है।जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है।इसमे आर्थिक दंड देने का प्रावधान है। खतरे में पड़ सकती है अमिताभ की जमानत अपील मामले में लखनऊ/प्रयागराज के हाईकोर्ट के अधिवक्ता बताते हैं कि किसी भी धारा में जमानत देने के लिए माननीय न्यायालय को खुद का विवेकाधार होता है।
लेकिन धारा 120 बी व धारा 306 में आरोपियों को कोर्ट तत्काल पहली ही सुनवाई में जमानत नहीं देती हैं। गिरफ्तार पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर इन दोनों धराओं के भी आरोपी हैं। इसलिए पहली ही सुनवाई की तारीख में उन्हें कोर्ट से जमानत मिलना बेहद कठिन होगा। साथ ही इस केस में सबसे जटिल पहलू यह भी है कि पीड़ितों ने आत्मदाह करने पहले अपनी रिकॉड्रिंग वीडियो वायरल कर दिया था,जिसमें अमिताभ ठाकुर को आरोपी बताया गया है। न्यायालय में एक तर्कपूर्ण बहस ही पूर्व आईपीएस को राहत दिलवा सकती है, लेकिन माननीय न्यायालय को पहली ही सुनवाई में सन्तुष्ट कर पाना बेहद कठिन कार्य किसी भी अच्छे अधिवक्ता के लिये होगा।
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