अब केन्द्र सरकार की नाकामी पर आर एस एस से भी उठने लगे सवाल,जाने क्या है पूरा मामला




कोरोना की दूसरी लहर में केंद्र सरकार की लापरवाही को लेकर हमले शुरू हो गए हैं। खास बात यह है कि महामारी की पहली लहर में थाली-ताली बजाने वाले लोग विभीषिका का कहर देखकर अब आक्रामक हो उठे हैं। पहली लहर में लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों के पलायन को लेकर मुद्दे विपक्ष की तरफ से उठे थे। लेकिन अब यह पहली बार है कि सवाल आम लोगों के बीच के साथ ही खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से उठ रहे हैं। पांच राज्यों की चुनावी सभाओं और रोड शो कराने का मसला हो या हरिद्वार में कुंभ के आयोजन का, भाजपा ने तब तक परहेज नहीं किया जब तक लोगों के बीच से आलोचना शुरू नहीं हो गई। 
पहली लहर में जनता के लिए मददगार की भूमिका प्रचारित करने वाली भाजपा इस बार महामारी की प्रचंड लहर में कहीं सक्रिय नहीं दिखी जो कि सवाल खड़े करता है। 
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार रहे है जिनमें भाजपा शासित राज्यों की सरकारें भी शामिल हैं। यानी जनता की नाराजगी पर अब अदालतें सख्त हैं और सरकार के रवैये से नाराज हैं। कोरोना काल में पांच राज्यों में बिहार की तर्ज पर वर्चुअल रैली न करके जोखिम उठाना और फिर उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों में सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ना। इस सबके बावजूद भाजपा को कुछ हासिल न होना बड़े सवाल खड़े कर रहा है। अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब जैसे राज्यों में चुनाव होने हैं, जहां कोरोना की वजह से मची तबाही भाजपा को नुकसान पहुंचा सकती है। इसे लेकर आरएसएस भी चिंतित है। 
सरकार की सख्ती के बावजूद सोशल मीडिया में जिस तरह मंगलवार 27 अप्रैल को फेल्ड मोदी हैशटैग तीन घंटों तक ट्रेंड करता रहा और शाम को रिजाइन मोदी ने ट्रेंड किया, उसने भाजपा के दिग्गजों के कान खड़े कर दिये हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने कोरोना की दूसरी लहर से मचे हाहाकार के बीच एक बयान जारी कर नाराजगी जताई है। जिसमें कहा है, ''समाज विघातक और भारत विरोधी शक्तियां इस गंभीर परिस्थिति का लाभ उठाकर देश में नाकारात्मक एवं अविश्वास का वातावरण खड़ा कर सकती हैं.'' इस बयान से भाजपा को आगाह करने की बात प्रतिध्वनित होती है।
अनुषांगिक संगठन राष्ट्रीय शैक्षणिक महासंघ की उत्तर प्रदेश इकाई का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कड़ा पत्र लिखना बहुत कुछ कह रहा है, जिसमें कहा गया है कि महामारी के बीच में राज्य में पंचायत चुनाव कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। पत्र में यह भी लिखा है कि, ''महासंघ की जानकारी के मुताबिक इस चुनाव ड्यूटी में शामिल 135 शिक्षकों की कोरोना से मृत्यु हो गई है। ये सभी महासंघ से जुड़े हुए हैं और मृतकों के आश्रितों को 50 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए।'' महासंघ के पत्र के बाद विपक्षी दल सरकार पर हमलावर हुए हैं।
कुल मिलाकर कोरोना की दूसरी लहर में त्रासदी झेल रही निरीह जनता की मदद करने में मंत्री, विधायक और भाजपा के कद्दावर नेता नाकारा साबित हो चुके हैं। योगी सरकार एक कद्दावर मंत्री ने खुद पत्र लिखकर लाचारी जताई। तमाम विधायक पत्र लिख चुके हैं। इन हालात में संघ के एक पदाधिकारी की बेबसी में की गई टिप्पणी काफी कुछ कहती है, ''जो हालात हैं उसमें कोई भी कुछ करने की स्थिति में नहीं है, परेशान लोग खासकर भाजपा के शुभचिंतक और काडर जब मदद के अभाव में अपनों को खो रहे हैं तो यह संगठन के लिए चिंता की बात है।'' कुल मिलाकर संघ की चिंता इस बात को लेकर है कि कोरोना के चलते बने हालात आने वाले दिनों में सियासी रूप से भाजपा और केंद्र सरकार को नुकसान पहुंचा सकते हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का यह कहना है कि संघ का बयान डेटारेंट की तरह है, ताकि भाजपा में असंतोष जोर न पकड़े। यह बयान भाजपा को बचाव का रास्ता दिखाने की कोशिश है, ताकि नेतृत्व पर सवाल उठाने वालों को भारत विरोधी बताया जा सके। राजनीतिक विश्लेषक लंबे समय बाद संघ के मौन भंग को असाधारण घटना मानते हैं जिसमें पंचायत चुनाव कराने के समय पर सवाल और दत्तात्रेय होसबले का बयान दोनों शामिल हैं। इससे एक बात तो साफ है कि भाजपा और उसके समर्थक ही अपनी सरकार से नाखुश ही नहीं नाराज भी हैं। सवाल यह भी है कि कोरोना की दूसरी लहर में भाजपा कर क्या रही है? भाजपा के मंत्री सांसद और विधायक यह क्यों नहीं बता पा रहे कि उन्होंने कहां और किसकी कितनी मदद की है। इन हालात में अब आम जनता तो भाजपा संगठन और सरकार दोनों से सवाल करेगी ही। यह बात दीगर है कि अभी तक सवाल विरोधी दलों की ओर से ही उठते थे।

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  1. तमिलनाडु में डीएमके की शानदार जीत हुई है, मा० स्टालिन जी मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके है, स्टालिन जी 'अन्य पिछड़ा वर्ग' से आते हैं और स्टालिन जी के गुरु एम करुणानिधि जी थे जो पेरियार भक्त थे जिनकी विचारधारा से प्रेरित रहे वे ब्राह्मणवाद के सख्त खिलाफ़ थे, यही कारण है कि स्टालिन जी भी ब्राह्मणवाद के सख्त खिलाफ़ हैं,

    स्टालिन जी के मंत्रिमंडल में कुल तैंतीस मंत्री है जिसमें एक भी बाभन नहीं है, तमिलनाडु विधानसभा पूरी तरह बाभनमुक्त हो चुकी है,

    देश के ४५ से ५५ फी सद् से भी अधिक खेतिहर पशुपालक कारीगर कामगार मजदूर वर्ग यानि 'खेपका जमात' (समान्यतया 'अन्य पिछड़ा वर्ग' सहित शिल्पी मेहनतकश समुदाय) के लोग पढ़ाई-लिखाई छोड़ सारे निरर्थक कामों में अपना कीमती वक्त बरबाद करते हैं,

    बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना, गौरक्षा दल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिन्दू युवा वाहिनी, श्री राम सेनै, एंटी रोमियो स्क्वैड, गायत्री परिवार, आर्य समाज, स्वाध्याय परिवार, करणी सेना, शिव चर्चा संगठन और भी तमाम न जाने कौन कौन से संगठनों सहित घूम-घूम कर चंदा बटोरने, पूजा जगराता भंडारा आयोजन और पंडाल तैयार कराने से लेकर उसकी देखभाल में दिन रात लगे रह कर जितने भी देश मे धार्मिक संगठन है सभी में अपना कीमती समय और युवावस्था गंवा कर अपना भविष्य अंधकारमय और दुष्कर करते रहते हैं,

    इन सारे धार्मिक पाखंडी निरर्थक कार्यक्रमों में ही अपनी पढ़ाई लिखाई और भविष्य संवारने का कीमती समय बरबाद करने का नतीजा यह है कि खेपका जमात (शिल्पकार मेहनतकशों सहित 'अन्य पिछड़े वर्ग' ) के लोग ;

    १- न्यायालयों में जज नहीं है ,
    २- सरकारी वकील नहीं है ,
    ३- यूनिवर्सिटीज में प्रोफेसर लेक्चरर नहीं है ,
    ४- शासन में सचिव नहीं है ,
    ५- आईएएस, आईपीएस अधिकारी नहीं है ,
    ६- डिप्टी कलेक्टर, डीएसपी नहीं है ,
    ७- बड़ी कंपनियों में निदेशक / अध्यक्ष नहीं है ,
    ८- जनसंख्या के अनुपात में मंत्री , विधायक , सांसद नहीं है ,
    ९- मीडिया में मालिक , संपादक , ब्यूरो प्रमुख नहीं है ,
    १०- देश मे एक भी बड़ा व्यावसायिक घराना नहीं है ,
    .. आदि इत्यादि,

    इतना सब भुगतने के बाजूद भी पिछड़े वर्ग और खेपका जमातियों की आंखें धार्मिक नशे में बंद हैं जिसका नतीजा यह है कि ;

    १- बाभन कॉलेजियम सिस्टम से जज बन जाते है ,
    २- बाभन-सवर्ण पीछे के दरवाजे से चुपचाप आईएएस बना
    दिए जाते है ,
    ३- बाकी नौकरियां ठेके या संविदा पर होंगी ,
    ४- बेहतर शिक्षा इतनी महंगी है कि कोई ईमानदार व्यक्ति वहां
    अपने बच्चे को पढ़ा ही नहीं पायेगा और सरकारी शिक्षा को
    साजिश के तहत बर्बाद किया जा रहा है ,
    ५- सरकारी क्षेत्र को धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है जहाँ
    आरक्षण का लाभ मिलता है, आरक्षण तो रहेगा पर
    सरकारी क्षेत्र ही नहीं रहेगा तो आरक्षण अपने आप ही ख़त्म
    हो जायेगा और उसे ख़त्म करने का दोषी भी कोई नही
    होगा ,
    ६- खेपका जमात /'अन्य पिछड़ा वर्ग' को प्रतिनिधित्वविहीन
    कर दिया जाएगा और उन्हें जातिगत पेशों में लौटने के लिए
    मज़बूर किया जाएगा और यह नौबत इसलिए आई क्योंकि
    'खेपका जमातियों और अन्य पिछड़े वर्ग' ने ने महज़ पेट
    भरने के लिए नौकरियां कीं ,

    अब आखिरी वक्त है कि पूरी मजबूती के साथ संगठित होकर इन सब बरबादियों की ज़िम्मेदार रही थाईलैण्डी परजीवी मनुवादियों की पार्टियों को सत्ता से बेदखल करने फलतः सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था के सघन बदलाव के लिए कमर कस ली जाय और आंदोलन का रास्ता चुना जाय तभी सदियों से चली आ रही थाईलैण्डी बाभनवादियों की लादी गयी धार्मिक - सामाजिक व्यवस्था की गुलामी से हमें आजादी संभव हो सकती है,

    तमिलनाडु के विधानसभा को ब्राह्मणों से मुक्त कराने के लिए पेरियार और करुणानिधि के वैचारिक उत्तराधिकारी स्टालिन साब को बहुत-बहुत बधाई ,

    जोहार मंडल,
    जोहार संविधान,
    जोहार विज्ञान !!!

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