कोरोना संक्रमण को लेकर मौतों के बाबत स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े एवं श्मसान घाट पर लाशों की आमद में बड़ा अन्तर क्यों ?



जौनपुर। कोविड 19 के बढ़ते संक्रमण काल में जनपद में हो रही मौतों को लेकर सरकारी स्तर से जारी आंकड़ों एवं भौतिक धरातल पर श्मसान घाटों पर लाशों का आगमन सरकारी आंकड़ों को सिरे से खारिज करते हैं। संक्रमण काल में लाशों की भीड़ से श्मसान घाटों पर लकड़ियों का संकट भी बना हुआ है। साथ श्मसान घाटों के व्यापारी आपदा में अवसर की तलाश करते हुए लकड़ी से लेकर हर एक सामानों का दो से तीन गुना अधिक मूल्य वसूला जा रहा है। परिजनों के मौत से दुखी लोग शोषण के शिकार हो रहे है। सरकारी तंत्र इस दिशा से बेखबर नजर आ रहा है।
यहाँ बता दे जिले के स्वास्थ्य विभाग द्वारा 19 अप्रैल तक जारी आंकड़े में बताया गया है कि अब तक कोरोना संक्रमण के चलते पूरे जिले में 113 मौते हुईं हैं। स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदारों के अनुसार सर्दी जुकाम खांसी एवं सांस लेने में संकट होने पर कोरोना संक्रमण माना जाता है। ऐसे मरीजों का उपचार एल टू अस्पताल में होना चाहिए। लेकिन श्मसान घाट पर आने वाली लाशों के संख्या की बात करें तो प्रतिदिन शहर स्थित रामघाट पर सुबह से शाम तक लगभग 100 के आस पास लाशें आ रही है। यह तो जिले के एक श्मसान घाट की स्थिति है जनपद के अन्य घाटों की समीक्षा हो तो संख्या भयावह नजर आयेगी। 
लाश लेकर आने वालों से मृत्यु का कारण जानने का प्रयास किया गया तो सच सामने आ गया और सरकारी स्तर से जारी आंकड़ों पर सवाल खड़ा होने लगा है। लगभग 80 प्रतिशत लोगों ने बताया कि मृतक को पहले बुखार आया फिर खांसी शुरू हो गयी सांस लेने में भारी कठिनायी हो रही थी उपचार के लिए सरकारी अथवा प्राइवेट अस्पताल गये वहां पर आक्सीजन की व्यवस्था न होने के कारण महज 24 घन्टे की बीमारी में मौत हो गयी है। 
स्वास्थ्य विभाग बताये कि जब मृत्यु के लक्षण कोरोना संक्रमण से संक्रमित होने के संकेत दे रहे हैं तो ऐसे मरीजों की मौतों को सरकारी आंकड़े में क्यों नहीं जोड़ा गया है। इसके पीछे का रहस्य क्या है। आंकड़े कम दिखाने से क्या कोरोना संक्रमण का खतरा कम हो जायेगा ? अथवा इसके पीछे कोई उपर का आदेश है कि मौत संख्या को कम दिखाया जाये। यहां यह भी बता दे कि जनपद में लगातार हो रही बड़ी संख्या में मौतों से जन मानस के बीच में हाहाकार मचा हुआ है। हर कोई घबराया हुआ संक्रमण से बचने के लिए घरों में दुबकने को मजबूर हैं। वहीं पर जिन परिवारो में कोरोना मौत का तांडव कर रहा है वहां लोग करीब से मौत का मंज़र असहाय हो कर देखते रह जा रहे हैं और सरकारी तंत्र पर इसका कोई असर नहीं हां आंकड़े कम करने मे मशगूल हैं। 
यहां यह भी बता दे कि श्मसान घाटों पर बड़ी संख्या में आ रही लाशों का फायद उठाने में श्मसान घाट के व्यापारी भी आपदा में अवसर तलाशते हुए शव दाह करने वालों का जम कर शोषण कर रहे हैं। शवों को जलाने के लिये लकड़ियों को दो से तीन गुना तक अधिक मूल्य वसूल रहे हैं। परिवार के सदस्य की मौत से गम जदा लोग शोषित होने के लिये मजबूर हो गये है।  व्यापारी कहता है लकड़ियाँ मिल नहीं रही है। मंहगी लकड़ी वह भी जंगली पेड़ की ला रहे हैं तो मंहगा देना मजबूरी है। रामघाट शवदाह स्थल पर शवों को जलाने वाले बताते हैं कि इस समय प्रतिदिन एक सैकड़ा से अधिक लाशें आ रही है। इतनी बड़ी संख्या में कभी लाशें नहीं आयी थी। 
अब एक बार फिर से स्वास्थ्य विभाग से सवाल है कि श्मसान घाट सही है अथवा स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े, एक बात और भी है कि अगर स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े सही है तो अस्पतालों में इतनी मारा मारी क्यों है ?    

Comments

Popular posts from this blog

इंजीनियर आत्महत्या काण्ड के अभियुक्त पहुंच गए हाईकोर्ट लगा दी जमानत की अर्जी सुनवाई सोमवार को फैसले का है इंतजार

अटल जी के जीवन में 'हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा"की थी स्पष्ट क्षलक -डा अखिलेश्वर शुक्ला ।

त्योहार पर कानून व्यवस्था दुरुस्त रखने एवं हर स्थित से निपटने के लिए बलवा ड्रील का हुआ अभ्यास,जाने क्या है बलवा ड्रील