स्त्री और पुरुष का आपसी सहयोग उत्कृष्ट संस्कृति के निर्माण का आधार - प्रो० निर्मला एस मौर्य कुलपति


जौनपुर। मोहम्मद हसन पी जी कॉलेज के हिन्दी विभाग द्वारा "स्त्री-विमर्श और निराला साहित्य" विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार में प्रो० निर्मला एस मौर्य ने कहा कि स्त्री-विमर्श में संस्कार, सौन्दर्य, संघर्ष तथा वेदना सभी समाहित होता है। निराला युगद्रष्टा कवि थे। उन्होंने अपने साहित्य में इसे प्रमुखता से स्थान ही नहीं दिया, अपितु स्त्रियों को समान अधिकार दिये जाने की जोरदार वकालत भी किया। बीज वक्तव्य में रीवा विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो० दिनेश कुशवाह ने निराला की पंक्तियों- देखते देखा मुझे तो एक बार, उस भवन की ओर देखा, छिन्न तार; देखकर कोई नहीं, देखा मुझे उस दृष्टि से जो मार खा रोई नहीं का उद्धरण देते हुए कहा कि स्त्री के बिना पुरुष के जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता। हमारे जीवन की शुरुआत ही उनसे होती है। किन्तु सदियों से स्त्री की स्थिति क्या रही? इसका निराला की वह पंक्ति कि "मार खा रोई नहीं", स्पष्ट कर देती है। 
मुख्य वक्ता हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रो० लालसा यादव ने कहा कि निराला ने स्त्री की पराधीनता का मुख्य कारण आर्थिक अभाव को माना है। वह पूँजी में स्त्रियों की पूर्ण भागीदारी के समर्थक हैं। उनके अनुसार अर्थाभाव के कारण स्त्रियों की शैक्षिक, सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में अवनति हुई तथा वो सारे जुल्मों की शिकार बनती रहीं। विशिष्ट वक्ता हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो० रीता चौधरी ने कहा कि निराला और प्रेमचन्द का समय एक था और उस समय की सारी स्त्री समस्याएं- शिक्षा, संसकार, अर्थाभाव, देह-शोषण, असमानता दोनों के साहित्य की विषयवस्तु बनते हैं। किन्तु निराला अपने समाधान में संघर्ष को जोड़ते हैं। 
वेबिनार की आयोजक मो० हसन पी जी कॉलेज, हिन्दी विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ० प्रमिला यादव ने धन्यवाद ज्ञापन किया। संचालन डॉ० महेन्द्र प्रताप यादव तथा अभिवादन डॉ० अनुरूद्ध सिंह ने किया। डॉ० के के यादव तकनीकी सहायक तथा डॉ० शाहिदा परवीन सह संयोजक रहीं। प्राचार्य डॉ० अब्दुल कादिर संयोजन प्रमुख रहे।

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