इन चार बैंको का जल्द होने जा रहा है प्राईवेटाईजेसन, जाने उपभोक्ताओं पर क्या होगा असर


सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन को लेकर बैंककर्मी लगातार विरोध जता रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र (Bank of Maharashtra), इंडियन ओवरसीज बैंक (Indian Overseas Bank), सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India) और बैंक ऑफ इंडिया (Bank of India) का प्राइवेटाइजेशन होने जा रहा है.
1 फरवरी को पेश हुए बजट में बैंकों के निजीकरण का ऐलान किया गया था. फिलहाल वित्त वर्ष 2021-22 में दो सरकारी बैंकों के प्राइवेटाइजेशन का प्लान है. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि प्राइवेटाइजेशन की लिस्ट में इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक के नाम की चर्चा है. हालांकि, अभी तक इसको लेकर कोई भी फैसला नहीं हुआ है.
4 बैंकों में से 2 का निजीकरण वित्त वर्ष 2021-22 में होना है. बैंकिंग सेक्टर में सरकार निजीकरण के पहले चरण के तहत मिड साइज और छोटे बैंकों में हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही है. कहा जा रहा है कि आने वाले सालों में सरकार देश के बड़े बैंकों पर भी दांव लगा सकती है।
वीएम पोर्टफोलियो के रिसर्च हेड विवेक मित्तल ने TV9 हिंदी को बताया कि सरकार देश में सिर्फ 5 बैंक रखना चाहती है. अन्य बैंकों का या तो मर्जर होगा या फिर उन्हें प्राइवेट कर दिया जाएगा. कहा जा रहा है कि सरकार उन्हीं बैंकों का आपस में मर्जर कराएगी जिनका एक्सपोजर पूरे देश में होगा.
बैंकों के निजीकरण का विरोध कर रहे बैंककर्मियों ने पिछले दिनों दो दिन का हड़ताल किया था. बैंककर्मियों पर संभावित असर के बीच ग्राहकों के बीच भी संशय का माहौल है. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि सरकारी बैंकों को प्राइवेट करने से ग्राहकों पर कोई खास असर नहीं होगा. बैंक की सर्विसेज पहले की तरह जारी रहती है.
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को कहा कि हम सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण (Privatisation of Banks) को लेकर सरकार के साथ चर्चा कर रहे हैं और प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि बैंकों की वित्तीय सेहत में सुधार हमारी प्राथमिकता है. आरबीआई कीमत और वित्तीय स्थिरता बनाए रखते हुए अर्थव्यवस्था में पुनरुद्धार (Economic recovery) के लिए अपने सभी नीतिगत उपायों के उपयोग को लेकर प्रतिबद्ध है।

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