सवालः आखिर बेगुनाह होने के बाद भी 20साल जेल में क्यों रहा बिष्णू
वाह रे कानून पुलिस ने ऐसा कानून खेल किया एक निर्दोष व्यक्ति बेगुनाह होने के बाद 20 वर्ष तक जेल में रहने के लिए मजबूर हो गया। इसका खुलासा 20वर्षों बाद न्यायपालिका कर सकी है। जी हां यह ललित पुर के विष्णु तिवारी की कहानी है और एक उदाहरण है जो बीते 03 मार्च 21 को केंद्रीय कारागार से रिहा हो कर बाहर खुली हवा में सांस लिया है। 20 वर्षों की सजा में वह तीन वर्ष ललितपुर जेल और 17 वर्ष यहां आगरा केंद्रीय कारागार में बंद रहा। ललितपुर जनपद के थाना महरौली के गांव सिलावन के रहने वाले 46 वर्षीय विष्णु के खिलाफ वर्ष 2000 में दुष्कर्म एवं एससी/एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज हुआ था। वह तभी से जेल में था। अदालत द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाने के बाद अप्रैल 2003 में उसे केंद्रीय कारागार, आगरा में स्थानांतरित कर दिया गया।
20 वर्ष में खोए स्वजन
विष्णु पांच भाइयों में चौथे नंबर का है। वर्ष 2013 में उसके पिता रामसेवक की मौत हो गई। एक साल बाद ही मां भी चल बसीं। कुछ साल बाद बड़े भाई राम किशोर और दिनेश का भी निधन हो गया, दोनों शादीशुदा थे।
हाई कोर्ट ने दिया था तत्काल रिहा करने का आदेश
आर्थिक रूप से कमजोर विष्णु के पास अपनी पैरवी के लिए न रुपये थे और न ही कोई वकील। ऐसे में जेल प्रशासन ने उसकी ओर से अपील की व्यवस्था की। विधिक सेवा समिति की ओर से अधिवक्ता ने उसके मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका प्रस्तुत की। इस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने विष्णु की रिहाई का आदेश दिया। विष्णु को परवाने का इंतजार था। 03 मार्च 21 को तीसरे पहर परवाना पहुंचा। इस मामले में कोर्ट ने पाया कि बिष्णू तिवारी निर्दोष है उसे गलत तरीके से फंसा दिया है। यहां सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर यह बात लोअर कोर्ट को क्यों पता नहीं चला।
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