बाला यादव हत्या काण्डः घटना का खुलासा के बाद नामजद एफआईआर पर सवाल?
जौनपुर। सिटी स्टेशन के प्लेटफार्म नम्बर एक पर एक फरवरी को घटित बाला यादव हत्या काण्ड में पुलिस द्वारा हत्या काण्ड के खुलासे एवं हत्यारों की गिरफ्तारी के पश्चात घटना को लेकर दर्ज करायी गयी एफ आई आर झूठी साबित हो गयी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पुलिस इस मामले को लेकर मुकदमा दर्ज कराने वाले बादी के खिलाफ कोई विधिक कार्यवाही करेगी?
बता दे कि घटना के बाद मृतक बाला यादव के भाई जितेन्द्र यादव ने मुकदमा दर्ज कराते समय अपनी व्यक्तिगत रंजिस के चलते विकास खण्ड मड़ियाहूं के प्रमुख लाल प्रताप यादव सहित तीन लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया था। नामजद अभियुक्त होने के कारण पुलिस ने तत्काल प्रमुख सहित तीनों को हिरासत में ले लिया। इसके बाद जब जीआरपी पुलिस ने गहरायी से छान बीन शुरू किया तो हत्या की कहानी कुछ अलग दिखने लगी।
जीआरपी पुलिस ने घटना सही अनावरण का मन बनाया तो पता चला कि प्रतिशोध में सैदनपुर गांव के निवासी पवन गुप्ता ने बाला यादव के हत्या की पूरी स्क्रिप्ट तैयार की थी और महाराष्ट्र से अपराधियों को ला कर सिटी स्टेशन पर घटना को अंजाम देकर फिर महाराष्ट्र निकाल गये थे। घटना की विवेचना कर रही जीआरपी पुलिस ने जौनपुर से लेकर मुम्बई तक के हर पहलू पर नजर दौड़ाया और हत्या मे शामिल चारों हत्यारों को गिरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया है।
अब यहाँ पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि आखिर मुकदमा वादी जिसने अपनी व्यक्तिगत रंजिस का बदला लेने के लिए निरपराध लोगों को हत्या जैसे जघन्य मामले का आरोपी बना दिया था क्या पुलिस उसके खिलाफ भी किसी तरह की कार्रवाई करेगी अथवा घटना के अनावरण के बाद अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जायेगी। यदि पुलिस जरा भी अनदेखी करती तो निश्चित रूप से नामजद अभियुक्त होने के चलते निरपराध लोग हत्यारे की श्रेणी में कटघरे के अन्दर नजर आ सकते थे।
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