सादगी सरलता की प्रति मूर्ति पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद जी दुनियां को कह दिया अलविदा
पीजीआई में अर्ध रात्रि को ली आखिरी सांस आज स्व माता प्रसाद जी की अंत्येष्टि लखनऊ में ही की जायेगी
जौनपुर। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद का मंगलवार की रात 12:00 बजे पीजीआई लखनऊ में निधन हो गया l राजनीति में स्वर्गीय बाबू जगजीवन राम को अपना आदर्श मानने वाले माता प्रसाद जिले के शाहगंज (सुरक्षित) विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर 1957 से 1974 तक लगातार पांच बार विधायक रहे। 1980 से 1992 तक 12 वर्ष उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रहे। प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने इन्हें अपने मंत्रिमंडल में 1988 से 89 तक राजस्व मंत्री बनाया था।
केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने 21 अक्टूबर 1993 को इन्हें अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया और 31 मई 1999 तक यह राज्यपाल रहे। राज्यपाल पद पर रहते हुए उनको तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पद छोड़ने को कहा तो उन्होंने दरकिनार कर दिया था। पूर्व राज्यपाल एक राजनेता के साथ साथ एक साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते रहे हैं । उन्होंने एकलव्य खंडकाव्य, भीम शतक प्रबंध काव्य, राजनीति की अर्थ सतसई, परिचय सतसई, दिग्विजयी रावण जैसी काव्य कृतियों की रचना ही नहीं की वरन अछूत का बेटा, धर्म के नाम पर धोखा, वीरांगना झलकारी बाई, वीरांगना उदा देवी पासी, तड़प मुक्ति की, धर्म परिवर्तन प्रतिशोध, जातियों का जंजाल, अंतहीन बेड़ियां, दिल्ली की गद्दी पर खुसरो भंगी जैसे नाटक भी रचे।
इसके साथ ही राज्यपाल रहते उन्होंने मनोरम, अरुणाचल पूर्वोत्तर भारत के राज्य, झोपड़ी से राजभवन आदि उल्लेखनीय कृतियां लिखी हैं। सादगी की प्रतिमूर्ति रहे माता प्रसाद ने राजनेताओं को आईना दिखाया है। आज के दौर में जहां एक बार विधायक या मंत्री बनते ही नेता गाड़ी-बंगले के साथ लाखों-करोड़ों में खेलने लगते हैं, वही पांच बार विधायक, दो बार एमएलसी, उत्तर प्रदेश के राजस्व मंत्री और राज्यपाल रहे माता प्रसाद पैदल या रिक्शे पर बैठे बाजार से सामान खरीदते देखे जाते थे।
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