दलितों, पिछड़ों और गरीबों को नहीं पढ़ने देना चाहती है सरकार - डॉ अनुराग मिश्र
जौनपुर।आम आदमी पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ अनुराग मिश्र ने प्रदेश सरकार के उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 15 जनवरी 2021 को जारी शासनादेश के द्वारा राजकीय महाविद्यालयों को सेल्फ फाइनेंस के अंतर्गत चलाने के लिए गए निर्णय का जमकर विरोध किया है ,और कहा कि सरकार की ऐसी नीतियों से समाज के दबे, कुचले, दलित, पिछड़े ,गरीब और असहाय परिवारों के बच्चे पढ़ने से वंचित रह जाएंगे। आरोप लगाया है कि प्रदेश सरकार उच्च शिक्षा को पूरी तरह से निजी हाथों में सौंपने जा रही है। डॉ मिश्र ने कहा कि समाज के अंतिम छोर पर खड़ा हर व्यक्ति का आखिरी आसरा यही होता है कि वह अपनी प्रतिभा के बल पर सरकारी स्कूलों में दाखिला लेकर अपनी पढ़ाई पूरी कर लेगा और तमाम कठिनाइयों के बावजूद समाज में अपना स्थान बना लेगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने 15 जनवरी 2021 को एक शासनादेश जारी कर दलितों ,पिछड़ों ,गरीबों और असहायों के अंतिम आस पर भी पानी फेर दिया है। प्रदेश सरकार नई शिक्षा नीति का बहाना बनाकर राजकीय महाविद्यालयों को बाजार आधारित सेल्फ फाइनेंस व्यवस्था में चलाने और शिक्षा से अपना हाथ खींचने का मुकम्मल इंतजाम कर दिया है। सरकार ने यह निर्णय लिया है कि आगामी सत्र 2021-22 से प्रदेशभर में निर्माणाधीन 74 राजकीय महाविद्यालय अब संबंधित राज्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से सेल्फ फाइनेंस व्यवस्था के तहत चलाए जाएंगे। सरकारी कागजों में किस तरह से झूठ बोलना है यह भाजपा की सरकार बहुत अच्छी तरह से जानती है। निर्माणाधीन की सूची में कई ऐसे राजकीय महाविद्यालयों को शामिल कर दिया गया है, जो पिछले कई वर्षों से संचालित हो रहे हैं जिसमें स्थाई शिक्षक और प्राचार्य हैं। राजकीय महाविद्यालय मुफ्तीगंज जौनपुर 2009 से संचालित हो रहा है। इसी प्रकार राजकीय महिला महाविद्यालय समदी अहरौला आजमगढ़ मॉडल कॉलेज के रूप में स्थापित है, जहां छात्र संख्या भी अच्छी है, बावजूद इसके इस महाविद्यालय को भी निर्माणाधीन की सूची में डालकर सेल्फ फाइनेंस योजना में चलाने का निर्णय ले लिया गया। अभी यह केवल एक शुरुआत है, वह दिन दूर नहीं जब स्ववित्तपोषित योजना में चल रहे तीन हजार से कम छात्र संख्या वाले तमाम महाविद्यालयों को नई शिक्षा नीति के क्लस्टर योजना का बहाना बनाकर बंद कर दिया जाएगा और अगले चरण में इन तमाम महाविद्यालयों को अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों द्वारा टेकओवर कर लिए जाएंगे। तस्वीर पूरी तरह से साफ है कि प्रदेश की लगभग 95% उच्च शिक्षा निजी हाथों के माध्यम से चल रही थी। सरकार शेष बची 05% उच्च शिक्षा जहां प्रदेश के दलित, पिछड़े,गरीब और असहाय परिवारों के प्रतिभावान छात्र पढ़ रहे थे,उसे भी सरकार निजी हाथों में देने की शुरुआत कर दी है और नई शिक्षा नीति तथा तीन हजार छात्रों के क्लस्टर योजना के बहाने प्रथम चरण में राजकीय महाविद्यालयों को, फिर द्वितीय चरण में प्रदेश के एडेड महाविद्यालयों को भी सेल्फ फाइनेंस बनाने का कुचक्र रच रही है। जिन राजकीय महाविद्यालयों में अभी तक छात्र मात्र पन्द्रह सौ से लेकर ढाई हज़ार रुपया देकर बीए, बीएससी और बीकॉम कर ले रहे थे, अब उन्हें यही डिग्री लेने के लिए 5 हजार से लेकर ₹15 हज़ार रुपए देने होंगे। इसी प्रकार जो छात्र अभी तक मात्र ढाई हज़ार से पैंतीस सौ रुपया देकर एमए, एमएससी व एमकाम कर ले रहे थे, अब उन्हें यही डिग्री लेने के लिए 6 हज़ार से लेकर ₹35 हज़ार तक देने होंगे। इसी प्रकार जो छात्र अभी तक बीएड राजकीय महाविद्यालयों से मात्र 5000रुपया देकर कर लेते थे ,उन्हें अब ₹51250 देना होगा। इस तरह से व्यवसायिक पाठ्यक्रमों जिसे पढ़कर छात्रों को नौकरी मिलनी है वह तो उत्तर प्रदेश के दलितों, पिछड़ों और गरीब परिवारों के लिए केवल और केवल सपना बनकर रह जाएगा। क्योंकि उसके लिए तो इन गरीब छात्रों को पचास हज़ार से लेकर बीस लाख रुपए तक अदा करने होंगे, जो इनके बस की बात नहीं है। जब प्रदेश सरकार को नवनिर्मित राजकीय महाविद्यालयों को स्ववित्तपोषित योजना में ही चलाना था, तो इसके निर्माण के औचित्य पर भी सवाल खड़ा करना आवश्यक हो जाता है।क्योंकि इन नवनिर्मित राजकीय महाविद्यालयों के आसपास कई ऐसे स्ववित्तपोषित महाविद्यालय पहले से मौजूद हैं, जिनकी सीटें तक नहीं भर रही हैं और छात्र संख्या कम है फिर प्रदेश सरकार ने जनता के टैक्स से मिले पैसे का दुरुपयोग क्यों किया?
दूसरी तरफ प्रदेश में पहले से चल रही सेल्फ फाइनेंस व्यवस्था की उच्च शिक्षा पूरी तरीके से भ्रष्टाचार एवं फर्जीवाड़े का अड्डा बनी हुई है। महाविद्यालय के नाम पर केवल पंजीकरण काउंटर चल रहे हैं, जहां केवल प्रवेश होता है और परीक्षा होती है। एक-एक शिक्षक एक साथ 5 से 10 जगह कागजों में भौतिक रूप से कार्यरत दिखाया जाता है। प्राचार्य तो शायद ही किसी महाविद्यालय में वास्तविक रुप से हों। शिक्षकों को वेतन के नाम पर मनरेगा मजदूरों से भी कम तीन हजार से लेकर पन्द्रह हज़ार रुपया प्रतिमाह, वह भी वर्ष भर में सात से आठ माह ही दिया जाता है। सेल्फ फाइनेंस व्यवस्था में कार्यरत शिक्षकों को यूजीसी पे स्केल दिए जाने के संबंध में 1 मार्च 2013 को माननीय उच्च न्यायालय का आदेश है जिसका अनुपालन उत्तर प्रदेश सरकार नहीं कर रही है। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन हेतु स्ववित्तपोषित योजना में कार्यरत लगभग 500 शिक्षकों की अवमानना याचिकायें माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में पहले से लंबित है,बावजूद इसके निर्माणाधीन नवनिर्मित इन राजकीय महाविद्यालयों में सेल्फ फाइनेंस योजना के तहत संचालित होने पर शिक्षकों को यूजीसी पे-स्केल दिया जाना कैसे संभव हो पाएगा? यह भी सरकार ने शासनादेश में नहीं बताया है। कल्पना कीजिए कि प्रदेश की पूरी की पूरी उच्च शिक्षा सेल्फ फाइनेंस हो जाएगी तो इस प्रदेश के नौजवानों का क्या हाल होगा? बड़ा सवाल यह भी है कि राजकीय महाविद्यालयों एवं एडेड महाविद्यालयों में पहले से कार्यरत स्थाई शिक्षकों का क्या होगा? स्ववित्तपोषित योजना में चल रहे महाविद्यालयों को जब बड़े-बड़े उद्योगपति टेकओवर कर लेंगे तब उन प्रबंधकों का क्या होगा , जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई से बड़े-बड़े भवन खड़े किए हैं?
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