सवालःलगातार सिमटता जा रहा NDA का कुनबा, इन 19 दलों ने छोड़ा BJP का साथ
भाजपा और सरकार की करतूतों से चलते अब एनडीए का कुनबा लगातार कमजोर होता जा रहा है। किसान बिल पर मोदी सरकार के रवैए से नाराज होकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने भी एनडीए से किनारा कर लिया है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को राजस्थान में भाजपा का मजबूत सहयोगी माना जाता रहा है। आरएलपी के अध्यक्ष हनुमान प्रसाद बेनीवाल किसान बिल पर केंद्र सरकार के समय से खासे नाराज हैं। आरएलपी से पहले भाजपा के सबसे भरोसेमंद साथी माने जाने वाले अकाली दल ने भी सितम्बर के आखिरी हफ्ते में एनडीए से अलग होने का एलान किया था। पिछले चार महीने के दौरान चार सियासी दलों में एनडीए छोड़कर भाजपा को गहरा झटका दिया है। यदि पिछले 6 वर्षों के सियासी दौर को देखा जाए तो इस अवधि के दौरान 19 छोटी-बड़ी पार्टियां एनडीए से अलग हो चुकी हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी को पीएम पद का चेहरा घोषित करने के साथ ही भाजपा ने एनडीए को व्यापक रूप दिया था। चुनाव के दौरान एनडीए ने कांग्रेस को करारा झटका देते हुए मोदी की अगुवाई में शानदार जीत हासिल की थी मगर उसके बाद से लगातार एनडीए के सहयोगी दल उसे छोड़ते रहे हैं। इस दौरान भाजपा को सबसे पहले हरियाणा जनहित कांग्रेस ने झटका दिया था। लोकसभा चुनाव के कुछ महीने बाद ही कुलदीप बिश्नोई ने एनडीए से अलग होने का एलान कर दिया था।
कुछ ही समय बाद तमिलनाडु की एमडीएमके पार्टी ने भी भाजपा पर तमिल हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाते हुए एनडीए से अलग रास्ता चुन लिया था। आंध्र प्रदेश में जनसेना भी 2014 में भाजपा से छिटक गई थी। दो साल बाद 2016 में तमिलनाडु की दो अन्य पार्टियों डीएमडीके और पीएमके ने भी एनडीए से दूरी बना ली थी। 2016 के दौरान केरल रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी ने भी भाजपा का साथ छोड़ दिया था।
तीन साल पहले 2017 में महाराष्ट्र में स्वाभिमान पक्ष नामक पार्टी ने मोदी सरकार पर किसान विरोधी होने का आरोप लगाया था और इसी आधार पर पार्टी ने एनडीए से अलग राह चुन ली थी। बाद में नागालैंड में नगा पीपुल्स फ्रंट और बिहार में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हम ने भी एनडीए से किनारा कर लिया था। वैसे बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मांझी की पार्टी हम और मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी फिर से एनडीए के कुनबे में लौट आई हैं।
एनडीए को सबसे बड़ा झटका तेलुगू देशम, शिवसेना और अकाली दल के साथ छोड़ने से लगा है। आंध्र प्रदेश में भाजपा की बड़ी सहयोगी पार्टी मानी जाने वाली तेलुगू देशम ने 2018 में एनडीए से किनारा कर लिया था। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने से नाराज थे और इसी कारण उन्होंने इंडिया छोड़ने का एलान किया था।
महाराष्ट्र में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों दलों में खींचतान शुरू हो गई। शिवसेना मुख्यमंत्री के पद पर पार्टी के मुखिया उद्धव ठाकरे को बैठाना चाहती थी जबकि भाजपा इसके लिए तैयार नहीं थी। इसे लेकर दोनों दलों के बीच में कुछ दिनों तक खींचतान चलती रही और आखिरकार शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार का गठन किया और इस तरह भाजपा की सबसे विश्वसनीय सहयोगी माने जाने वाली शिवसेना की राहें जुदा हो गईं।
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