मुलायम सिंह यादव मेडिकल कालेज का नाम बदलने से मचा राजनैतिक घमासान

 





मेरठ। शेक्सपियर ने एक बार कहा था- ‘नाम में क्या रखा है? किसी चीज का नाम बदल देने से भी चीज वही रहेगी। गुलाब को किसी भी नाम से पुकारो, गुलाब ही रहेगा।’ लेकिन लगता है कि भारत के नेताओं को यह बहुत ही पसंद आया है तभी तो नाम बदलने का सिलसिला जारी है। लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि इसबार निशाने पर सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव का नाम है। जिसे लेकर राजनैतिक गलियारे में बहस शुरू हो गयी है।

अभी हाल ही में मेरठ में हापुड़ रोड पर बने मुलायम सिंह यादव मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर अब नेशनल कैपिटल रीजन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज कर दिया गया है। कालेज प्रबंधन की ओर से मेडिकल कॉलेज का नाम बदलने को लेकर आवेदन किया गया था, जिसकी अनुमति मिल गयी है।
पश्चिमी यूपी की राजधानी माने जाने वाले मेरठ में सपा सरकार में तैयार हुए मुलायम सिंह यादव मेडिकल कॉलेज का नाम बदलने के साथ ही इस मुद्दे पर राजनीतिक घमासान भी शुरू हो गया है। सपा नेता इसे राजनीति से प्रेरित देश भावना के विरूद्ध किया गया फैसला बता रहे हैं, तो वही बीजेपी नेता कॉलेज का नाम बदलने पर काफी खुशी जाहिर कर रहे हैं। सपा से शहर विधायक रफीक अंसारी और सपा जिला अध्यक्ष राजपाल सिंह ने डॉक्टर सरोजनी अग्रवाल पर आरोप लगाया है कि जिस सपा ने उन्हें दो बार एमएलसी बनाया उसके साथ उन्होंने धोखा किया है।



मुलायम सिंह यादव मेडिकल कॉलेज का नाम बदलने के राजनीतिक कारण देखे जा रहें हैं। कॉलेज की संचालक डॉ. सरोजनी अग्रवाल ने जब कॉलेज की नींव रखी थी तब वह समाजवादी पार्टी की एमएलसी थीं। यूपी में योगी सरकार आने के बाद डॉ. सरोजनी अग्रवाल भाजपा में शामिल हो गईं। ऐसे में मुलायम सिंह यादव के नाम का मेडिकल कालेज उनके लिये सरदर्द था। गौरतलब है कि डा. सरोजिनी अग्रवाल ने चार अप्रैल 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथों मुलायम सिंह यादव मेडिकल कालेज का शुभारंभ कराया था।

उन दिनों डा. अग्रवाल सपा की ओर से दूसरी बार विधान परिषद सदस्य बन चुकी थीं। कद्दावर सपा नेता आजम खान से भी उनके पारिवारिक रिश्ते थे। उन्होंने अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने में प्रभावी भूमिका निभाई। एमसीआई की अनुमति मिलने के बाद साल 2018 में 150 सीटों पर एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू की गई थी। ऐसे में अब इसका नाम बदलना राजनीति नजरिए से देखा जा रहा है।

डॉ. सरोजिनी अग्रवाल पहली बार सपा से 21 मई 1995 को जिला पंचायत अध्यक्ष बनीं। उनका नाम मुलायम सिंह यादव की गुड लिस्ट में शामिल था। उन्हें मुलायम सिंह यादव की काफी करीबी माना जाता था। 31 जनवरी 2009 को मुलायम सिंह ने उन्हें पहली बार विधान परिषद भेजा था। यही वजह थी कि उन्होंने मेरठ में बनवाए गए इस मेडिकल कॉलेज का नाम मुलायम सिंह यादव के नाम पर रखा था, लेकिन जैसे ही सकिल पंक्चर हुई, चार अगस्त 2017 को डा. सरोजिनी अग्रवाल सपा से अपना 22 साल पुराना रिश्ता तोड़कर भाजपा में शामिल हो गई।

उस समय होने पार्टी छोड़ने की वजह होने का खुलासा करते हुए कहा था कि उनकी मुलायम सिंह यादव में गहरी आस्था थी। उनके नाम पर मेडिकल कालेज खोला गया। सपा की कमान जब अखिलेश के हाथ आई तो मुलायम सिंह नेपथ्य में रह गए। डा. सरोजिनी के मुताबिक सपा में मुलायम सिंह का पहले जैसा सम्मान नहीं रह गया था। इसीलिए वह भी सपा से अलग हो गईं।

दरअसल भाजपा का दामन थामने के साथ ही डॉ. सरोजिनी अग्रवाल ने मेडिकल कालेज का नाम बदलने के लिए आवेदन कर दिया था। उन्हें पता था कि राजनीतिक रूप से सपा और भाजपा दो किनारे हैं। ऐसे में भगवा खेमे को साधने के लिए सपा प्रमुख के नाम से मुक्ति पानी होगी। इसलिए मेडिकल कालेज का नाम बदलना जरूरी था। उनके सियासी पाला बदलने के बीच मेडिकल कालेज पुराने खेमे में फंस गया था। कयास यही लगाए जा रहे थे कि मुलायम सिंह यादव मेडिकल कालेज का नया नाम पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी या पं. दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर होगा। लेकिन,कहते हैं न,दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है।लिहाजा डा. सरोजिनी ने एनसीआर इंस्टीट्यूट कर भविष्य में आने वाले किसी भी सियासी चक्रव्यूह से खुद को बचा लिया।



मेरठ में बनवाए गए इस मेडिकल कॉलेज का नाम बदलने की वजह पूछने पर भाजपा एमएलसी, सरोजनी अग्रवाल इस बात से इंकार करती हैं कि मेडिकल कॉलेज का नाम बदलने के पीछे कोई राजनीति है। वे कहती है,कोई राजनीतिक लक्ष्य साधने के लिए मेडिकल कालेज का नाम नहीं बदला। ऐसा होता तो मेडिकल कालेज का नाम पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी या पं. दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर रखा जाता। भाजपा ने मुझ पर कभी किसी प्रकार का दबाव नहीं बनाया। यह प्रबंधन की स्वाभाविक पहल थी।

वैसे ऐसा नहीं है कि पहली बार कोई नाम बदला गया हो। नाम बदलने का लंबा इतिहास है। कभी राज्यों, तो कभी शहरों का। अब यह अलग बात है कि लेकिन बदलने भर से जिस जगह का नाम बदला गया है उसका काया कल्प हो जाएगा… लेकिन इसका जवाब शायद ही सरोजनी अग्रवाल से मिले। शायर मुनव्वर राना ने कहा था-

दूध की नहर मुझसे नहीं निकलने वाली

नाम चाहे मेरा फरहाद भी रखा जाए।

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