गाँधी जी ने कहा था भारत की आजादी तब दिखेगी जब एक महिला अकेली रात में सड़कों पर निकल सकें


जौनपुर।   राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर "अनुभूति समूह मंच"  ने त्रीदिवसीय संगोष्ठी (बेबनार) आयोजित किया। जिसमें देशभर से विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ विद्वानों ने भाग लिया। समापन  सत्र के मुख्य अतिथि जौनपुर के राजा श्री कृष्ण दत स्नातकोत्तर महाविद्यालय, राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ अखिलेश्वर शुक्ला ने महात्मा गांधी के आदर्शों एवं विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गांधी जी मन,कर्म,बचन में सामंजस्य  को सुख शांति और खुशहाल जीवन का आधार मानते थे। उनका मानना था कि कथनी करनी और सोंच में समानता नहीं होना ही मानवीय दुःख का कारण है। " मौन " सबसे सशक्त भाषण है। दुनियां धीरे -धीरे आपको सुनेगी। प्रार्थना को गलती स्वीकारने का साधन मानते थे। गलती को स्वीकारना सफाई का उत्तम मार्ग बताया। दुनियां को बदलना चाहते हैं तो पहले अपने आप को बदलो। विनम्रता से दुनियां को हिला सकते हैं। "आंख के बदले आंख " की भावना पुरे विश्व को अंधा बना देगा। 
इस तरह से एक दुसरे से प्रतिशोध (जलन) की भावना को घातक बताया। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के नायक ने स्वतंत्रता पर यह कहा कि -" भारत की आजादी तब दिखेगी जब एक महिला अकेली रात में सड़कों पर निकल सके।" गांधी ने विश्वास को हमेशा तर्क से तौलने की बात कही। तथा यह कहा कि -" जब विश्वास अंधा हो जाता है तो ब्यक्ति मर जाता है।" आपका भविष्य वर्तमान के कर्मो पर निर्भर करता है। डॉ शुक्ला ने भारतीय संस्कृति के प्रति महात्मा गांधी के समर्पण पर प्रकाश डालते हुए युवा वर्ग को पश्चिमी प्रभाव (चकाचौंध की दुनिया) से बचकर रहने की नसीहत दी।                        अध्यक्षीय उद्बोधन में जोधपुर से डां अनिल कुमार खंडकर ने अंग्रेजों की "फुट डालो राज करो"(  Devid and Rule  ) की नीति से भी खतरनाक साबित हो रहे भारतीय राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने वाले ग्लैमरस नेताओं की भूमिका पर सवाल खड़े किए। प्रत्येक वर्ष गांधी जयंती पर होने वाली औपचारिकता को आचरण के साथ यथार्थ में उतारने की नसीहत दी।                         कार्यक्रम के कुशल संचालक डॉ ब्रीज किशोर पांडेय ने दिनकर सहित साहित्यकारों की रचनाओं से कार्यक्रम को रोमांचक और प्रभावशाली बनाये रखा। वहीं कार्यक्रम सचिन डॉ संजय कुमार जी ने संगोष्ठी में  उपस्थित विद्वत जनों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि आयोजन में प्रस्तुत सारगर्भित प्रस्तुति जनसामान्य तक पहुंचाने में हम कामयाब होंगे।
                                              
 निष्कर्स यह रहा कि- 1/मुम्बई फिल्मी दुनिया का चकाचौंध (नग्नता), 2/मीडिया (इलेक्ट्रॉनिक) द्वारा टीआरपी की होड़, अन्तर्गल सामग्री , युवा पीढ़ी को संस्कारहीन बनाने , तथा  बेतुकी बतकही। 3/ राजनीतिक दलों में जनहित के बजाय दलीय हित के लिए राष्ट्रीय मुल भावना के विपरित आचरण। आदि ऐसे कृत्य हैं जो राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के आदर्शों को ठेस पहुंचाता है। यदि समय रहते देश के कर्णधार नहीं चेते तो प्रकृति (समय )  समझाने में विलम्ब नहीं करेंगी।                                                      कार्यक्रम में मुख्य रूप से डां शिवानंद (दिल्ली), डॉ गौतम कुमार नायक (रांची), डॉ शशि कांत (बलिया), डॉ संजीव कुमार, डॉ मनोज ओझा (बग्सर), अर्जुन कुमार, एस लाल जी, नीलम साहु, डॉ राकेश कुमार श्रीवास्तव आदि वक्ताओं ने गांधी जी के कुछ अनछुए पहलुओं पर भी प्रकाश डाला।  .

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