जौनपुर के इस श्मसान घाट पर महिलायें जलाती है चिता, जिम्मेदार हैं बेखबर


 जौनपुर। सच है पेट की भूख मनुष्य से सब कुछ करा देती है। यहां तक कि परिवार की जीविका चलाने के लिए धार्मिक परम्पराओं को तोड़ कर महिलाओं को श्मसान घाट पर चिता जलाने को मजबूर कर दिया है। जबकि हमारे धर्म शास्त्र में उल्लेख है कि महिला को किसी भी श्मसान घाट पर चिता जलाने की अनुमति धर्म नहीं देता है। 
यह कोई कपोल कल्पित कहनी नहीं बल्कि जनपद जौनपुर के तहसील बदलापुर क्षेत्र के पिलकिछा श्मसान घाट की सच्ची कहानी है कि महिलाएं लाश जलाने का काम करती है। 
बतादे कि पिलकिछा श्मसान घाट पर पर प्रतिदिन सरोज, मनभावती, साधना सहित आधा दर्जन महिलायें श्मसान घाट पर पूरे दिन लाशों को जला कर उससे मिलने वाली आय से अपने परिवार का खर्च चला रही है। 
सरोज देवी ने बताया कि पहले उसके पति यहाँ घाट पर लाश जला कर घर का खर्च चलाते थे लेकिन उनकी कुछ वर्षों पूर्व मौत हो जाने के पश्चात घर की जीविका चलाने का सारा दारोमदार उसके कंधे पर आ गया अब बच्चों का पेट पालने के लिए वह दिन भर बिना किसी हिचक के लाशों को जला कर उससे होने वाली आय परिवार को रोटी की व्यवस्था करती है। यही हाल कमो बेस सभी महिलाओं का है लगभग सभी महिलाएं विधवा ही है जो परिवार को रोटी की व्यवस्था करने के लिए लाश जला रही है। 
साधना कहती है कि हम अगर धार्मिक मान्यताओं का पालन करें तो हमारा परिवार भूख से मरने को बाध्य हो जायेगा। सरकार अथवा ग्राम सभा की ओर से हम मजलूमों के लिए जीविको पार्जन की कोई व्यवस्था नहीं की गयी है। नहीं हम लोगों को मनरेगा में काम दिया जाता है नहीं जीविको पार्जन की कोई व्यवस्था ही इसके अलावां हम महिलाओं के पास है। एक दूसरे को देख कर इस कार्य में इलाके की लगभग एक दर्जन महिलायें लगी हुई है। 
यहाँ पर महिला लाशों को जलाने के लिए लकड़ी बेचने से लेकर जलाने तक का ठेका लेती है। प्रति लाश कम से कम सौ दो सौ रूपये की बचत हो जाती है। लाश जलाने वाली महिलाएं बताती है कि इस श्मसान घाट की कुछ धार्मिक मान्यता है माना जाता है कि अयोध्या से चलकर  भगवान श्री राम इस घाट पर आये और नदी पार कर गये थे। इसी मान्यता के चलते यहाँ पर जौनपुर के पश्चिमान्चल एवं उत्तरी क्षेत्र शाहगंज सहित आजमगढ़, अम्बेडकर नगर जनपद से लोग दाह संस्कार करने के लिए लाशों को ले कर आते है। जिससे लाश के सहारे कारोबार करने वाले की आजीविका चलाने में कोई परेशानी नहीं है। 
लाश जलाने वाली महिलाओं की संख्या अधिक होने के कारण बस रोटी की व्यवस्था हो जाती है इससे और कोई विकास का कार्य संभव नहीं है। पिलकिछा श्मसान घाट पर महिलाओं द्वारा शव जलाने की इस घटना ने धार्मिक मान्यताओं को कटघरे में खड़ा कर दिया है। साथ ही सरकार और सरकारी तंत्र जो गरीब मजलूमों के सहायता का दावा करते नहीं थकता है उसे यहाँ पिलकिछा श्मसान घाट पर महिलाओं की दशा क्यों नजर नहीं आ रही है। अब सवाल यह भी है कि क्या जिम्मेदार लोग इन महिलाओं के लिये रोजी रोटी के लिये कोई दूसरी व्यवस्था कर धार्मिक मान्यताओं का पालन करा सकेंगे अथवा नहीं ?। 

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