विश्व शांति का शत्रु -चीन का चरित्र --डॉ अखिलेश्वर शुक्ला



दुनियां का एक ऐसा देश चीन है। जिसकी सीमा सर्वाधिक देशों से मिलती है ।चीन की सीमा से लगे कुल 14 देश हैं। यदि समुद्री सीमा को जोड़ लिया जाए तो इसकी संख्या 20 हो जाती है । सभी पड़ोसी देशों से इसकी शत्रुता व सीमा विवाद है। रूस, जापान, कोरिया, वियतनाम, मंगोलिया, भूटान, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान सहित कोई भी पड़ोसी देश युद्ध व तनाव से मुक्त नहीं रहा है । भुक्तभोगी सभी पड़ोसी इसके ब्यक्तित्व व चरित्र से भलि भांति परिचित हैं। एकमात्र पड़ोसी पाकिस्तान ऐसा देश है । जिसे चीन इतना कर्ज दे चुका है - कि उसके ऋण से मुक्ति पाना मुश्किल है। यही कारण है कि चीन के निर्देश पर पाकिस्तान को काम करना पड़ता है। पाकिस्तान की जिम्मेदारी बस यही है कि वह भारत में अस्थिरता पैदा करे। जिससे स्वाभिमानी भारत को चीन पर आश्रित रहने के लिए मजबूर किया जा सके। जबकि चीन से आयातित युद्धक सामग्री के सहारे भारत- पाक युद्ध (1965  एवं 1971) का परिणाम पाकिस्तान भुगत चुका है । फिरभी नहीं समक्षना पाकिस्तान की मजबूरी है।                                                 भारत को बार- बार छेड़ने वाला चीन 1962 युद्ध की चर्चा तो करता है। लेकिन 1967  ,1987, 2017 की चर्चा क्यो नहीं  करता??? जिसमें चीन को मुंहकी खानी पड़ी थी। हिमालयी सीमा एक ऐसा इलाका है ।जहां से जाड़े के मौसम में भारतीय सेना अपनी सुरक्षा चौकियों से वापस आ जाया करती थी । 1967 में  जब अपने चौकियों पर भारतीय फौज पहूंची तो देखा कि चीनी सेना अनुपस्थिति का लाभ उठाते हुए  स्थायी बंकर बना कर , टेंट लगाकर , जमें हुए हैं। दोनों तरफ से अक्सर कहासुनी--धक्कामुक्की आम बात हो गई ।  06 सितंबर 1967 को धक्का-मुक्की की एक घटना का संज्ञान लेते हुए भारतीय सेना ने तनाव दूर करने के लिए 'नाथू ला दर्रे ' से लेकर 'सेबू ला दर्रे ' तक तार का बाड लगाने का फैसला किया। इसकी जिम्मेवारी  70- फील्ड कंपनी आंफ इंजीनियर तथा  18-राजपूत की एक टुकड़ी को सौंपा गया । जब बाडबंदी शुरू हुई, तो चीनी सैनिकों ने रोकना चाहा । कहासुनी ,धक्का-मुक्की हुई। लेकिन बाढ़ बंदी लगातार चलती रही। चीनी सैनिक वापस बंकर में जा चुके थे । चंद मिनटों में अचानक तेज ह्विसील की आवाज आयी। चीनी फौजी बंकर से बाहर निकले और मशीनगनों  से गोलियां बरसानी शुरू कर दी।  02 अधिकारी और कई जवान शहीद हुए। लेकिन थोड़े समय बाद जो जवाबी कार्यवाही भारतीय फौज ने की वह चीन भूल नहीं पाया है। आज भी उसकी हिम्मत नहीं होती कि वह फायर खोलें। उसे वह दिन याद आता होगा जब जवाबी कार्यवाही में 300 से अधिक चीनी सैनिकों को भारतीय फौज ने मार गिराया था। जिसमें 65 भारतीय फौजी भी शहीद हुए थे। यह युद्ध 11 से 15 सितंबर तक चला था।                                                               चीन की हालत तब और बदतर हो गई जब चीनी सेना ने भारतीय फौज पर जबरजस्ती  'भेंणें'' अपने कब्जे में लेने का आरोप लगाया-  तो तात्कालिक युवा नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी बाजपेई  '' भेणों " का एक झुंड लेकर चीनी दूतावास पहुंच गये। तथा इस सतही आरोप का प्रतिकात्मक जवाब दिया । इतना ही नहीं तात्कालिक उप प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई 13 सितंबर 1967 को अमेरिकी यात्रा पर गए तो मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि - "चीन चाहता है कि हम उसके  पिछलग्गु बन जाएं और पहले एशिया फिर दुनिया में दबदबा कायम करने में हम उनकी मदद करें । जो  भारत के लिए संभव नहीं है "। 
यह टिप्पणी स्पष्ट करता है कि चीन हमेशा से दबाव की रणनीति पर काम करता रहा है । यही कारण है कि - चीन के सभी पड़ोसी शांति चाहते हुए भी अशांत हैं । तिब्बत, हांगकांग , ताइवान को इसी नीति के तहत अपने साथ जोड़ने  (सीमा विस्तार) के लिए रक्तपात- नरसंहार से भी चीन परहेज नहीं करता ।                                                           प्राचीन भारतीय धर्म ग्रंथों में  "देवलोक "  "दानवलोक" की बातें क्यों की जाती हैं ? उसका जीता जागता नमूना बहसी चीन प्रस्तुत करता जा रहा है। भारतीय "वसुधैव कुटुंबकम " की नीति उसकी आंखों को नहीं सुहाती। चीन मानवीय व्यवहार से दूर रहकर अपनी ' तिजोरी भरने', 'खरबपति बनने', 'सीमा विस्तार करने' से लेकर विश्व का सर्वशक्तिशाली राष्ट्र बनने का ख्वाब समय समय पर अपने गतिविधियों से जाहिर करता रहा है। कोरोना काल में जिसे दुनिया ने अपनी खुली आंखों से  स्पष्ट देखा और समझा है। उसे समझने के लिए चीन की दृष्टि सीमित क्यों पड़ रही है ? तामसी प्रवृत्ति का हश्र क्या होता है ? इसे प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध में देखा जा चुका है। फिर तृतीय विश्व युद्ध की स्थिति क्यों पैदा कर रहा है? हिमालयन घाटी उसके लिए आत्मघाती सिद्ध होगा। उसे क्यो नही दिखता?                               
भारतीय सीमा में चीन ने जब भी अंधेरे का लाभ उठाया। भारत ने अपने संयम- शांति का परिचय दिया है । जिसे वह भारत की कमजोरी समक्ष बैठा है। यही कारण है कि वह अपने सामानों के भारतीय बाजार में मांग को लेकर आश्वस्त है। चीन का नेतृत्व तो बोलता कम है । लेकिन अपने सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स के माध्यम से भारतीयों को बकवासी तथा मजबूर ग्राहक के रूप में प्रस्तुत कर रहा है । जो आम भारतीयों के लिए असह्य है। वस्तु स्थिति भी ऐसी है कि चीन से जो आयात 2015 में 58 .26 अरब डालर का था ।वह 2018 में बढ़कर 76. 87 अरब डालर , तथा 2019 में 70.31 अरब डालर हो गया । भरतीय निर्यात का अंतर बड़े घाटे का सुचक है।जिसको भारत सरकार ने जनमानस के दबाव को देखते हुए चुनौती के रूप में लिया है। विगत दिनों  चीन को आवंटित  कई बड़े  टेंडर निरस्त करने की कार्यवाही प्रारंभ हो चुकी है। भारतीय आमदनी से भारत के विरुद्ध युद्ध असहनीय है। चीन ने अपने द्वारा फैलाए गए विश्व विनाशक कोरोना संक्रमण से ध्यान भटकाने के लिए पहले दक्षिण चीन सागर फिर भारत के हिमालयन घाटी में तनाव पैदा करके ध्यान भटकाने का प्रयास जो किया है। वह चीन के लिए भारी पड़ सकता है ।                                              अमन पसंद भारत नहीं चाहता की तृतीय विश्वयुद्ध का केंद्र एशिया का हिमालयन घाटी बने। वैसे चीन के साथ खड़ा होने वाला देश भी भारत के विरुद्ध जंग में चीन का साथ नहीं देंगे । फिर अकेला चीन विश्व शक्ति बनने के गुरुर में चकनाचूर हो सकता है ।           
  भारत ही नहीं विश्व के सभी देशों ने समझ लिया है कि "विश्व शान्ति का शत्रु -चीन का चरित्र विश्वसनीय नहीं है।" चीनी माल/सामान का विकल्प भारत के लिए आवश्यक है।                                                                     पूरा भारत 15/ 16 जून के गलवान घाटी में शहीद अपने वीर सपूतों को नमन करता है । जो दुश्मनों को  "मारते मारते मरे हैं" ऐसे वीर सपूत  शहीदों पर भारत को नाज है ।                        

Comments

Popular posts from this blog

घूसखोर लेखपाल दस हजार रुपए का घूस लेते रंगेहाथ गिरफ्तार, एन्टी करप्शन टीम की कार्रवाई

जानिए इंजीनियर अतुल सुभाष और पत्नी निकिता के बीच कब और कैसे शुरू हुआ विवाद, आत्महत्या तक हो गई

इंजीनियर आत्महत्या काण्ड के अभियुक्त पहुंच गए हाईकोर्ट लगा दी जमानत की अर्जी सुनवाई सोमवार को फैसले का है इंतजार