शीर्ष नेतृत्व के नारों की धज्जियां उड़ा रहे हैं जनपद के माननीय गण, जातीय भावनाओ से ग्रसित हो कर करते है काम




जौनपुर। देश लेकर प्रदेश तक भाजपा के शीर्ष नेतृत्व भले ही सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के नारे की दम भरते हो लेकिन भाजपा के सांसद विधायक गण सायद इस नारे को धता बताते हुए अपना विकास स्वजातीयो का विश्वास और सबके साथ की अपेक्षाओं के साथ काम करते नजर आ रहे हैं। इस लिए दल के शीर्ष नेतृत्व का उपरोक्त नारा केवल छलावा नजर आ रहा है। 
जी हां जनपद जौनपुर में ऐसे कई जनप्रतिनिधियों के कारनामे इसके उदाहरण है। जनपद में एक विधायक जी है जो अपने विधानसभा क्षेत्र ही नहीं बल्कि पूरे जनपद के गांवों को दो भागों में विभाजित करने की घृणित राजनीति करते हुए ग्रामीण जनो का उत्पीड़न करने का काम करते है और अपने विधानसभा में ऐसा बिष बमन किया है कि पूरा क्षेत्र आपस में लड़ रहा है। गांव की सियासत करते हुए विधायक जी मजलूमों के साथ न्याय करने के बजाय एक पक्ष से पार्टी बन कर पैरवी करने में मशगूल नजर आ रहे हैं। पहली बार विधानसभा का दर्शन करने वाले विधायक जी इस पद को अपनी जागीर समझ लिए है लेकिन सायद भूल गये कि पांच साल बीतने पर जनता जबाब भी देती है और जहां तक स्वजातीय का सवाल है तो कूट कूट कर भरा हुआ है। ऐसे में शीर्ष नेतृत्व का उपरोक्त नारा कितना सार्थक है सहज अनुमान लगा सकते हैं। 
इसी तरह एक माननीय विधायक जी ऐसे भी है जो अपने स्वजातीय जनो के प्रति अधिक समर्पित नजर आते है शासन की योजनाओं का लाभ पहले अपने स्वजातीय बन्धु को इसके बाद यदि कुछ शेष रहा तो आम जन को योजना का लाभ मिलेगा। एक माननीय जी है जो सरकारी धन यानी विधायक निधि जो जनता के विकास हेतु मिलती है का उपयोग पहले खुद के विकास हेतु खर्च करते है उनकी नजर में जनता को कोई स्थान नहीं है। 
इस तरह लगभग सभी माननीयो की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है जनता के विकास के लिए सरकार ने निधी बनाया और माननीय लोग उसे अपनी सम्पत्ति समझ कर काम कराने वालो से कमीशन के नाम पर खासा धनोपार्जन भी करते है ।खबर है कि निधी की धनराशि लगभग 40 प्रतिशत तो इन्ही माननीय जनो सहित सरकारी विभाग में कमीशन की भेंट चढ़ती ऐसे में काम और विकास की गुणवत्ता कैसी होगी सहज अनुमान लगाया जा सकता है ।
जो स्थित नजर आ रही है वह इतना तो संकेत करती है कि उपर नेतृत्व चाहे जितना दावा करे लेकिन जिले स्तर पर माननीयो द्वारा अपनों को मलाई तो आम जनता के उत्पीड़न का भी काम किया जा रहा है। ऐसे में राम राज की परिकल्पना करना बेमानी साबित होगा। 

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