जौनपुर भदेठी कान्ड के अभियुक्तों की जमानत मंजूर होने के बाद भी लटकती दिख रही है कानून की तलवार
सपा नेता अभियुक्त जावेद सिद्दीकी
जौनपुर। जनपद के थाना सरायख्वाजा क्षेत्र स्थिति भदेठी का चर्चित कान्ड जो जौनपुर से लेकर पूरे प्रदेश में चर्चा का बिषय रहा इस घटना में अभियुक्त बनाये गये सपा नेता जावेद सिद्दीकी सहित पांच जमानत होने के बाद भी कानून की तलवार एक बार फिर उनके उपर लटका दी गयी है। ऐसा किसके इशारे पर हुआ है यह तो जांच का बिषय है लेकिन सरकारी वकील के द्वारा जिलाधिकारी के पास जमानत निरस्त करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है। कानूनी रूप से ऐसा प्रस्ताव आने पर जिलाधिकारी हाई कोर्ट को प्रस्ताव भेजते हैं। हलांकि जमानत मंजूर होने के बाद भी सभी अभियुक्त गैंगेस्टर के आरोप में अभी जेल की सलाखों के पीछे ही कैद है।
यहाँ बता दे कि डीजीसी अनिल सिंह 'कप्तान' एवं एडीजीसी सुनील अस्थाना ने आज सोमवार को जिलाधिकारी के पास भेजे प्रस्ताव में कहा है कि घटना में दस लोगों के घर फूंक दिए गए थे। 28 लोग घायल हुए जबकि आगजनी में तीन मवेशी जिदा जल गए थे। सेशन कोर्ट ने भादवि व एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों की अनदेखी करते हुए सपा नेता जावेद सिद्दीकी समेत पांच आरोपितों की जमानत गत 20 जून को मंजूर कर दी थी, जबकि लोक व्यवस्था व राज्य सरकार को हुई काफी क्षति के मद्देनजर यह आदेश औचित्यपूर्ण नहीं है।
डीजीसी का कहना है कि धारा 436 भादवि व एससी-एसटी एक्ट के प्रावधानों को संज्ञान में नहीं लिया गया। बहस तथा साक्ष्य के आदेश का उल्लेख नहीं किया गया। आरोपित छूटने के बाद वादी व साक्ष्यों को प्रभावित कर सकते हैं। आरोपितों ने शारीरिक दूरी का जान-बूझकर उल्लंघन किया। घटनास्थल का वीडियो, मृत जानवरों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, 28 घायलों की मेडिकल रिपोर्ट पर न्यायालय ने ध्यान नहीं दिया। यह प्रकरण सामाजिक व धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने का नमूना है। आरोपितों के कृत्य से लोक व्यवस्था बनाने व दंगा रोकने के लिए पुलिस बल की तैनाती करनी पड़ी। इसलिए न्याय हित में आरोपितों की जमानत अर्जी निरस्त होना आवश्यक है।
खबर है कि डीडीसी के प्रस्ताव को जिलाधिकारी ने हाई कोर्ट भेजने का आश्वासन दिया है ।ऐसी दशा में हाई कोर्ट सभी की जमानत निरस्त कर सकता है।
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