भारतीय अर्थव्यवस्था और चीन की प्रतिक्रिया डां अखिलेश्वर शुक्ला
दुनिया अभी कोरोना संक्रमण की विभीषिका से उबर नहीं पाया है। पूरा विश्व आर्थिक मंदी की चपेट में है। चीन को अपनी राष्ट्रीय संपत्ति बढ़ाने की पड़ी है । वह भारत के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप से बाज नहीं आ रहा है । चीन में सोशल साइट तथा मीडिया पर सरकारी नियंत्रण है। सरकारी मीडिया सक्रिय है । बीजिंग से प्रकाशित "ग्लोबल टाइम्स " की भड़काऊ टिप्पणियों ने भारतीयों को उकसाने का कार्य किया है । चीनी मीडिया का कहना है कि भारत के लोग सिर्फ हल्ला करते हैं: मेहनत नहीं करते । भारतीय उत्पाद चीनी उत्पाद के मुकाबले टिक नहीं सकते। भारत में न बिजली है न पानी । कंपनियों के लिए निवेश आत्मघाती होगा। भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक फैला है। भारत के पास काफी पैसा है । लेकिन अधिकांश पैसा राजनेताओं , अफसरों और उनके कुछ अंतरंग पूंजीपतियों के पास है। जो अपना पैसा देश में खर्च करना नहीं चाहते । भारतीय हर हाल में चीन का ही सामान खरीदेंगे। उक्त टिप्पणी चीनी मीडिया के तरफ से आई है । जबकि वास्तविकता यह है कि दोयम दर्जे का घटिया चीनी माल भारत में पटा पड़ा है ।आम भारतीयों को यह पता भी नहीं है कि कौन सा सामान हमारे देश का है और कौन सा विदेशी (चीन) का है। जो भी माल सस्ता मिला भारतीय खरीद लेते हैं । चीनी माल गुणवत्ता में कहीं नहीं टिकता। स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले खिलौने , इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से लेकर चॉकलेट बिस्किट बिजली के सामान, खतरनाक जानलेवा मांझा के साथ ही भारतीय पर्व होली -दिवाली , ईद -बकरीद से संबंधित चीनी सामान भारतीयों के द्वारा खरीदा जाना आम हो गया है। फिर भी यह चीनी प्रतिक्रिया हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। समझा जा सकता है। वास्तव में चीनी प्रतिक्रिया के कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं :- पहला तो यह कि चीन द्वारा भेजा गया एंटीबॉडी कोरोनावायरस किट्स अनुपयोगी होने के कारण वापस करना पड़ा । द्वितीय यह कि अमेरिकी, जापानी कंपनियों ने भारत में आने का मन बना लिया है। चीन में कार्यरत लगभग 1000 कंपनियों में से 300 कंपनियों ने भारत में आने की तैयारी कर ली है। तृतीय कि भारत ने स्वावलंबी होने का निर्णय लिया है। जो चीन के आर्थिक हित में नहीं है। यह अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण व निंदनीय है। भारत चीन आयात निर्यात को देखा जाए तो 2001 - 2002 मे केवल 03 अरब डॉलर का था । 2018- 2019 में यह बढ़कर 88 अरब डालर पर पहुंच गया । यही नहीं दुनिया के देशों से भारत में आयात 507 अरब डालर , तथा भारत से निर्यात 321 अरब डालर का रहा है। यह 2018-2019 का आंकड़ा है । जिसमें व्यापार घाटा 176 अरब डालर का रहा । जिसमें अकेला चीन का सर्वाधिक व्यापार घाटा 52 अरब डालर का है। जो 2017-2018 में 63 अरब डालर का था। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि भारत में अधिकाधिक आयात चीन से होता है ।जबकि निर्यात के नाम पर भारत चीन को खनिज, इंधन ,कपास आदि देता है। इतना ही नहीं भारत में मोबाइल की महत्वपूर्ण कंपनियों में सर्वाधिक मांग वाली 10 कंपनियां चीन की हैं। जिसमें ओप्पो , बीनो जिओनी , श्याओमी आदि हैं । मोटोरोला को भी चीनी कंपनी लिनोवो ने खरीद लिया । चीनी डाउनलोड ऐप्स में tik tok , shareit, VC browser, vigo video, club factory , cam scanner, beauty Plus hello app, आदि भारतीय धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं । इतना ही नहीं कार्टून , गेम्स सहित ऐसे कार्यक्रमों को भारतीय युवा को परोसा है कि यदि युवा पीढ़ी नहीं संभली तो एक पीढ़ी बर्बाद हो जाएगी। वास्तव में चीन ने भारतीय नौजवानों को बर्बाद करने का एक अभियान चला रखा है । घटिया सामग्री भारत के स्वास्थ्य व भविष्य के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं। चीनी मांझे से कई जान जा चुके हैं। भारत निर्मित सामान की गुणवत्ता का जवाब नहीं है। इसीलिए महंगी पड़ती है। घटिया सामान के बल पर खरबपति बनने का ख्वाब रखने वाला चीन भारत को अपना बाजार बनाए रखना चाहता है। उपरोक्त परिस्थितियों से सबक लेकर अब भारत को आगे आना होगा। कोरोनावायरस से सबक लेना होगा । वास्तव में भारत का एक महत्वपूर्ण सुविधा भोगी वर्ग मैकियावेली तथा चारवाक की जगह -"कौटिल्य का अर्थशास्त्र" तथा "कामंदकीय नीतिसार" का अध्ययन, अनुशीलन, अनुश्रवण, व अनुपालन नहीं करेगा , तब तक भारत अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता ? हां ! इतना जरूर है कि पड़ोसी मुल्क चीन पर एक देहाती कहावत चरितार्थ होने वाली है कि "चले थे खरबपति बनने खाकपति बन कर लौटे " अंत में कहना चाहूंगा कि "कितना भी तुम गले लगाओ लाख निभा लो यारी , सुधर नहीं सकते वो जिनकी फितरत में है गद्दारी'।
बहुत ही शानदार, सुन्दर, प्रकाशित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद, बधाई, शुभ कामनाएं।
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