कोरोना काल:आत्म समीक्षा का सुनहला अवसर - डा अखिलेश्वर शुक्ला
लाक डाउन को पूरी दुनिया एक आपदा एवं आर्थिक- मानसिक संकट के रूप में देख रही है। वास्तव में मानवीय क्षति का मूल्यांकन नहीं किया जा सकता । मनुष्य के पास समान आंखें हैं । दृष्टिकोण समान नहीं हो सकता। यही इंसान को इंसान से अलग करता है । एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र से अलग करता है। इसके पीछे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक ,रहन-सहन ,खान-पान, विचार- व्यवहार आदि कई कारक होते हैं । यही स्थिति विकसित विकासशील अविकसित राष्ट्रों पर भी लागू होता है । विश्व के विकसित देश जहां सुख-सुविधाओं से लेकर स्वास्थ्य संसाधनों में अग्रणी रहे हैं। संक्रमण भी सर्वाधिक तथा सर्वप्रथम वहीं से शुरू हुआ था। आज पूरी दुनिया संक्रमित (प्रभावित )हो चुकी है। अनेकता में एकता की विशेषता के साथ भारत :- जाड़ा- गर्मी- बरसात ,पहाड़ -पठार ,नदी -नाले , झरने- तालाब, भाषा -बोली ,भेस -भुसा ,धर्म -जाति , का संगम दिखता है। लांकडाऊन के दौरान जो सामुहिक समर्पण का भाव दिखा, वह बेमिसाल रहा। जिस देश में लोग डॉक्टर, पुलिस ,अधिकारी, वकील, शिक्षक, युवा ,छात्र , पत्रकार, (मीडिया), कर्मचारियों, सामाजिक संस्थाओं पर सवाल उठाने लगे थे। आपदा काल में उक्त सभी यह सिद्ध करने में कामयाब रहे कि " हम जान की बाजी लगाकर भी राष्ट्र की रक्षा कर सकते हैं"। अमेरिका में भी सेवा करते हुए डॉक्टर( पिता -पुत्री ) ने अपनी जान गवा कर भारत का नाम रोशन किया। विश्व के कई देशों में भारतीय कोरोना वारियर्स ने देश की प्रतिष्ठा को बढ़ाया। भारत में डॉक्टर ,पुलिस, अधिकारी , वकील, शिक्षक,नर्स, कर्मचारी,,सफाईकर्मी, युवा संगठन ,एनसीसी, एनएसएस , स्वयंसेवी , सामाजिकसंस्थाओं ने जो सेवा कार्य किया वह अगली पीढ़ी के लिए पथप्रदर्शन का कार्य करेगा। पञकारिता से जुड़े मीडिया कर्मीयों ने जान जोखिम में डालकर जिन दुर्लभ दृश्यों को , भटकते श्रमिकों-मजदुरों की पीड़ा को जुबान दिया है। जनमानस तक पहुंचाया है। भुलाया नहीं जा सकता।
नकारात्मकता त्याग कर सकारात्मक सोच विकसित करना होगा। पर्यावरण को प्रदुषण मुक्त लांक डाऊन ने कर दिया है। आर्थिक नुक्सान के आकलन पर यह लाभ भारी पड़ेगा। अनुशासन, पंक्तिबद्ध खड़े होने की आदत, छुआछूत (संक्रमण) एक नये रूप में स्वीकार्य, शिक्षा ब्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन, डॉक्टर, पुलिस ,अधिकारी, वकील, शिक्षक, युवा ,छात्र ,पत्रकार (मीडिया), कर्मचारियों, सामाजिक संगठनों आदि कोरोना वारियर्स के प्रति सम्मान का भाव विकसित होने चाहिए। गांवों से शहरों-विदेशों में पलायन का अनुमान जो अभी तक किसी को नहीं था। अब इसे सुव्यवस्थित किया जाना होगा। श्रमिकों के गांव वापसी के बाद उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार। श्रमिकों में उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवानों की संख्या भी काफी है। भारत की रीढ़- गांव, किसान,नौजवान हैं । ग्रामीण स्तर पर सामाजिक पारिवारिक, मानसिक ,आर्थिक, अदृश्य, बिमारियों, सम्भावित समस्याओं पर सतर्क रहने की आवश्यकता होगी। मानव संसाधन का अधिकाधिक उपयोग हो। ऐसे कार्यक्रम निर्धारित किए जाने होंगे । मांसाहारी चीन द्वारा छत्तीसगढ़ बिहार,उप्र, झारखंड मैं पैदा होने वाली कुछ खास सब्जियों का बीज मांगा जा रहा है। जिसमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक है । देश में विकसित करने की आवश्यकता है। प्राकृतिक संसाधन (खनिज पदार्थ ,-कच्चा माल), मानव संसाधन( युवा ,खेल ,शिक्षा) , सार्वजनिक संपत्ति, का सर्वाधिक स्वदेशी उपयोग (उत्पादकता के सिद्धांत पर आधारित) हो। जिससे भारतीय जीडीपी में वृद्धि होगी। अधिकाधिक नौजवानों को काम मिलेगा। पूर्वजों की मान्यताएं - पेड़ पौधों की सुरक्षा ,खानपान, रहन सहन पर विशेष ध्यान दिया जाना समीचीन होगा। गांव और किसान भारत की रीढ़ हैं। यह विकास का मुल मंञ हो।
उपरोक्त महत्वपूर्ण विषयों (तथ्यों ) पर ध्यान आकृष्ट करते हुए यह विश्वास करता हूं कि जनसामान्य से लेकर राज्य- केंद्र की सरकारों के लिए कोरोना (लांक डाउन) से अच्छा (उचित) समय और नहीं हो सकता । जब हम सभी संभावनाओं पर विचार कर एक स्वतंत्र स्वावलंबी भारत की कल्पना करें । इस नवीन भावना के साथ राष्ट्र निर्माण में हमारी क्या सहभागिता हो सकती है? हमारे लिए आत्मसमीक्षा का इससे सुनाहला अवसर नहीं हो सकता।
जिंदगी कभी मुश्किल तो कभी आसान होती है , कभी "'उफ"तो कभी "वाह" होती है। न भूलना कभी अपनी मुस्कुराहट, क्योंकि इससे हर मुश्किल आसान होती है।
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