सरकार की घोषणा ठेंगे पर, प्रबंध तंत्र ने शुरू की जरिये मैसेज फीस की मांग
जौनपुर। देश में कोरोना संक्रमण के चलते लाक डाऊन घोषित होने के पश्चात जैसे ही पूरा देश ठहर गया वैसे ही तत्काल शिक्षा विभाग के मंत्री एवं उच्च स्तरीय अधिकारी सामने आये और देश प्रदेश के छात्रों को राहत देने का ऐलान किया कि इस पूरे वर्ष तक छात्रों से शिक्षण शुल्क अथवा प्रवेश शुल्क नहीं लिया जायेगा। इस तरह की घोषणा कर सरकार अथवा सरकारी तंत्र एवं मंत्री ने सस्ती लोकप्रियता तो हासिल कर लिया लेकिन बाद में इस पर ध्यान नहीं दिया कि क्या उनके घोषणा पर अमल हो रहा है अथवा घोषणा हवा हवाई साबित हो रही है।
जी हाँ हम दावे के साथ कह सकते हैं कि जनपद जौनपुर में सरकार एवं सरकारी तंत्र के उक्त घोषणा का पालन सम्भवतः एक या दो प्रति लोग कर रहे होंगे शेष सभी विद्यालयों के प्रबंधन के लोग सरकार का हुक्म नहीं मान रहे है। यहां तक कि सत्ता धारी दल का लाभ उठाने वाले भी अपनी सरकार के मंत्री का आदेश मानने से परहेज किये बैठे हैं।
सूत्र की माने तो लगभग सभी प्राईवेट विद्यालयों के प्रबंध तंत्र के लोग छात्रों के अभिभावकों को मैसज के जरिए फीस एवं एडमीशन फीस की मांग कर रहे हैं। इतना ही नहीं धमकी भी दी जा रही है कि फीस न देने की दशा मे छात्र का नाम विद्यालय से हटाया जा सकता है। इस तरह की जानकारी लगभग दो दर्जन अभिभावकों ने देते हुए अपने बच्चे ( छात्र ) के हित का हवाला देते हुए अपना नाम सार्वजनिक न करने का अनुरोध किया है। इस खेल में कोई एक दो विद्यालय नहीं बल्कि लगभग सभी छोटे - बड़े विद्यालयों के लोगों की सन्लिप्तता बतायी जा रही है। आश्चर्य तो तब हुआ कि सरकार के अंग कहे जाने वाले जनप्रतिनिधि जो विद्यालय का संचालन कर रहे है उनके भी प्रबंध तंत्र का मैसेज फीस के लिए अभिभावक के पास पहुंचा तब लगा कि सरकार के आदेश पर अमल नहीं हो रहा है।
खबर तो यह है कि जिला प्रशासन भी इस ओर ध्यान देने से परहेज किये बैठा है क्योंकि अन्दर खाने में प्राईवेट विद्यालयों के प्रबंधन से कुछ खिचड़ी पकी हुई है लेकिन वह अब पर्दे के पीछे है प्रबन्ध तंत्र के लोग इसके बाबत अपनी जुबान नहीं खोल रहे है। जो भी हो लेकिन इस तरह के खेल से सरकार एवं सरकारी तंत्र सहित विद्यालय के प्रबंधन के लोग सभी सवालों के कटघरे में खड़े नजर आते है कि यदि छात्रों एवं अभिभावकों को फीस माफी की सुविधा नहीं देनी थी तो घोषणा क्यों किया गया है। कहीं यह सस्ती लोकप्रियता के लिए किया गया है। क्या जिला प्रशासन का दायित्व नहीं बनता है कि वह सरकार की घोषणाओ का पालन कराये आदि तमाम सवाल खड़े हो रहे है। यह तय है कि यदि फीस वसूली गयी तो माना जायेगा कि घोषणा केवल सस्ती लोकप्रियता ही था।
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