कोरोना युग : " चलो चलें गांव की ओर
चीन के बुहान शहर से चला कोरोनावायरस विश्व के 210 देशों में अपना संक्रमण फैला चुका है। विश्व में जिस देश के शासन में सूर्यास्त नहीं होता था। वह ब्रिटेन, विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का न्यूयॉर्क , इटली के खूबसूरत शहर लोंबार्डी , स्पेन की राजधानी की आधी आबादी, फ्रांस का पेरिस जहां से फैशन की शुरुआत होती है, ईरान रूस आदि देशों के महत्वपूर्ण शहरों को प्रभावित करता हुआ , भारत के सत प्रतिशत शिक्षित राज्य केरल तथा महानगरों में मुंबई , दिल्ली , कोलकाता , कानपुर , आगरा, नोएडा आदि शहरों को प्रभावित करते हुए पूरे हिन्दुस्तान के शहरों में प्रवेश कर गया ।लेकिन अभी तक जो बचा है वह है भारत की आत्मा जो गांव में निवास करती है। भारत विश्व का दूसरे नंबर का मुल्क है जिसकी जनसंख्या लगभग 135 करोड़ है। 06 लाख 38 हजार गांव है, 5000 कस्बे , तथा 400 बड़े शहरों का भारत है । भारत की अधिकांश जनता लगभग 70 प्रतिशत कृषि कार्य पर आधारित है ।गांव से शहरों के तरफ तथा शहरों से विश्व के अन्य हिस्सों (देशों) में पलायन काफी तेजी से हुआ है ।कारण बेरोजगारी है। गांव से जो लोग भी बड़े शहरों तक पहुंचे तो घर - गांव के लोगों ने सोचा होगा कि गांव और घर का विकास होगा ।लेकिन जो जहां गया वही का हो गया । खासकर वैसे लोग जिनको शहर रास आ गया गांव की घर जमीन भी बेचने में कोई कोताही नहीं किए । शहर में पहुंचे लगभग अधिकांश लोगों का मन शहर की चकाचौंध में रम गया । गांव में जो कुएं का पानी पीकर 100 वर्ष जिंदा रहते थे वह आरो का पानी पीकर अपने को स्वस्थ महसूस करने लगे । जबकि 60- 70 की आयु पूरी करना कठिन हो गया ।लेकिन शहरों में गाड़ी ,घर ,मकान, दुकान स्थापित करके स्थाई निवासी हो गए । लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है । जो श्रम करके पेट भरता है । ऐसे लोगों की संख्या बहुतायत है। यह संख्या तब और भी अस्पष्ट हो गया जब दिल्ली और मुंबई की सड़कों पर लाखों लोगों का रेला दिखलाई दिया । इसमें वैसे लोग थे जो झुग्गी झोपड़ी या एक कमरे में 10 -20 की संख्या में रह कर अपनी आजीविका के साधन से अपना खर्च चला रहे थे। जब यह श्रमिक वर्ग श्रम से मुक्त हो गया तो इसे बिना परिश्रम किए मिलने वाला भोजन रास नहीं आया । इन्हें अपना गांव घर याद आने लगा जहां इन्होंने अपना बचपन गुजारा है । गांव की गलियों में खेले बढ़े हैं। खेत -खलिहान, झोपड़ी - मिट्टी के मकान से वास्ता रहा ।जहां खुले में चारपाई डालकर आकाश के नीचे सोने की आदत रही। जहां सिवान की हरियाली तथा गांवों की खुशहाली में रहे हैं। ऐसे में बिना परिश्रम का सरकारी भोजन पचाना मुश्किल दिख रहा था । दूसरी तरफ बड़े औद्योगिक घरानों के मालिक तथा इनसे काम लेने वाले इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जब ये घर चले जाएंगे तो मेरा काम शुरू कैसे होगा । वही गांव के लोग भी जो इनके आने पर कभी प्रसन्न होते थे ।अब इस बात को लेकर चिंतित है कि शहर का कोरोनावायरस गांव तक पहुंच जाएगा । जो हालत शहरों की थी ,वह गांव की भी हो सकती है। साधन-संपन्न वर्ग भी शहरों की अनिश्चितता तथा गांवों की सुरक्षित स्थायित्व के महत्व को समझने लगा है। ऐसे भी बहुत लोग होंगे जो गांव के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रम व सरकारी पैकेज का इंतजार कर रहे होंगे। ऐसे हालात में अभी शहर से उल्टे पांव गांव की तरफ पलायन कर रहे श्रमिक जब गांव तक पहुंचेंगे , तो उन्हें रोजगार की आवश्यकता होगी । गांव का आर्थिक ढांचा केवल कृषि कार्य पर निर्भर है। वह भी अभी सरकारी नजरों से काफी दूर है। ऐसे में महात्मा गांधी के आदर्शों तथा भारतीय संविधान के चौथे अध्याय में लोक कल्याणकारी राज्य , ग्रामीण विकास ,, वैज्ञानिक कृषि , गोरक्षा सहित नशा उन्मूलन जैसे विभिन्न ग्राम उन्मुख कल्पनाएं की गई हैं । राज्य को निर्देश दिए गए हैं कि उक्त को पूरा करने का प्रयास किया जाए। लेकिन गांवों का विकास अब भारत की मजबूरी होगी । विकास का पहिया अब गांव की तरफ घूमाना होगा ,ताकि गांव के श्रमिक गांव में रोजगार प्राप्त कर सकें । गांव की आवश्यकता गांव में ही पूरी हो । शहरों पर निर्भरता समाप्त हो । सारी सुख सुविधाएं गांव में हो । कृषि को उद्योग का दर्जा प्राप्त हो। तभी भारत का गांव खुशहाल तथा आबाद होगा। भारत सरकार को यह नारा बुलंद करना होगा " चलो चलें हम गांव की ओर" ।
ठुकरा दो अगर दे कोई जिल्लत से समंदर दे । इज्जत से जो मिल जाए वह कतरा ही बहुत है ।
था तुझे गुरुर खुद के लंबे होने का ऐ सड़क । गरीब के हौसलों ने तुझे पैदल ही नाप दिया।।
डॉअखिलेश्वर शुक्ला , विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान
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