जिला विधिक सेवा प्राधिकरण शिविर में दी गयी कानून की जानकारी
जौनपुर । जिला एवं सत्र न्यायाधीश /अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण जौनपुर एम0 पी0 सिंह, के निर्देशन में ‘‘मॉ गुजराती इण्टर कालेज चुरावनपुर, बक्शा जौनपुर‘‘ में प्रोपेगेशन आफ राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009 विषय पर विधिक साक्षरता शिविर का अयोजन किया गया।
शिविर में सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण मो0 फिरोज द्वारा बताया गया कि बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम या शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आर0टी0ई0) 4 अगस्त 2009 को लागू हुआ, जिसमें 6 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा के महत्व के तौर-तरीकों का वर्णन है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत भारत में 1 अप्रैल 2010 से अधिनियम लागू होने पर भारत हर बच्चे के मौलिक अधिकार को बनाने के लिए 135 देशांे में से एक बन गया।
इस अधिनियम के तहत 6 और 14 वर्ष की आयु के बीच शिक्षा को प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार बनाता है और प्राथमिक विद्यालयों में न्यूनतम मानदंडों को निर्दिष्ट करता है। इसमें सभी निजी स्कूलों को 25 प्रतिशत बच्चों के लिए आरक्षित करने की आवश्यकता है। बच्चों को आर्थिक स्थिति या जाति आधारित आरक्षण के आधार पर निजी स्कूलों में प्रवेश दिया जाता है। यह सभी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों को अभ्यास से भी रोकता है। अधिनियम मे यह भी प्रावधान करता है, कि प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी भी बच्चे को बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण, निष्कासित या आवश्यक नहीं माना जाएगा। स्कूल ड्रॉप-आउट के विशेष प्रशिक्षण के लिए उन्हें समान उम्र के छात्रों के बराबर लाने का भी प्रावधान है। 18 वर्ष की आयु तक विकलांग व्यक्तियों की शिक्षा का अधिकार एक अलग कानून के तहत रखा गया है, विकलांग व्यक्ति अधिनियम में स्कूल के बुनियादी ढ़ाचे, शिक्षक-छात्र अनुपात और संकाय में सुधार के बारे में कई अन्य प्रावधान किए गए है। 2011 में एक महत्वपूर्ण विकास कक्षा 10 तक और पूर्व स्कूली आयु सीमा में शिक्षा के अधिकार का विस्तार करने के लिए सिद्वांत रूप में लिया गया निर्णय है। सीएबीई समिति इन बदलावों के निहितार्थ को देखने की प्रक्रिया में है।
इस अवसर स्कूल के प्रधानाचार्य विजय बहादुर, पैनल लॉयर, देवेन्द्र यादव, पी0एल0वी सुनील गौतम, सुनील कुमार कन्नौजिया, अध्यापकगण व छात्र-छात्राएं एवं क्षेत्रीय नागरिक उपस्थित रहे।
शिविर में सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण मो0 फिरोज द्वारा बताया गया कि बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम या शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आर0टी0ई0) 4 अगस्त 2009 को लागू हुआ, जिसमें 6 वर्ष के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा के महत्व के तौर-तरीकों का वर्णन है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत भारत में 1 अप्रैल 2010 से अधिनियम लागू होने पर भारत हर बच्चे के मौलिक अधिकार को बनाने के लिए 135 देशांे में से एक बन गया।
इस अधिनियम के तहत 6 और 14 वर्ष की आयु के बीच शिक्षा को प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार बनाता है और प्राथमिक विद्यालयों में न्यूनतम मानदंडों को निर्दिष्ट करता है। इसमें सभी निजी स्कूलों को 25 प्रतिशत बच्चों के लिए आरक्षित करने की आवश्यकता है। बच्चों को आर्थिक स्थिति या जाति आधारित आरक्षण के आधार पर निजी स्कूलों में प्रवेश दिया जाता है। यह सभी गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों को अभ्यास से भी रोकता है। अधिनियम मे यह भी प्रावधान करता है, कि प्रारंभिक शिक्षा पूरी होने तक किसी भी बच्चे को बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण, निष्कासित या आवश्यक नहीं माना जाएगा। स्कूल ड्रॉप-आउट के विशेष प्रशिक्षण के लिए उन्हें समान उम्र के छात्रों के बराबर लाने का भी प्रावधान है। 18 वर्ष की आयु तक विकलांग व्यक्तियों की शिक्षा का अधिकार एक अलग कानून के तहत रखा गया है, विकलांग व्यक्ति अधिनियम में स्कूल के बुनियादी ढ़ाचे, शिक्षक-छात्र अनुपात और संकाय में सुधार के बारे में कई अन्य प्रावधान किए गए है। 2011 में एक महत्वपूर्ण विकास कक्षा 10 तक और पूर्व स्कूली आयु सीमा में शिक्षा के अधिकार का विस्तार करने के लिए सिद्वांत रूप में लिया गया निर्णय है। सीएबीई समिति इन बदलावों के निहितार्थ को देखने की प्रक्रिया में है।
इस अवसर स्कूल के प्रधानाचार्य विजय बहादुर, पैनल लॉयर, देवेन्द्र यादव, पी0एल0वी सुनील गौतम, सुनील कुमार कन्नौजिया, अध्यापकगण व छात्र-छात्राएं एवं क्षेत्रीय नागरिक उपस्थित रहे।
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